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पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/१६१

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बज भाषा और उर्दू इन पंक्तियोंमें एक आध शब्दके सिवा सब ठेठ हिन्दी हैं । यहाँ तक कि गश्त आदि जो फारसी शब्द इसमें आये हैं, वह भी हिन्दीमें मिल चुके हैं। ___ सौदाके समयमें तूने की जगह से काम निकल जाता था और 'तेरे मुँह की जगह 'तुझ मुख' कहते थे । जैसे- मुल्के आईन जबसे तें लूटा । तुझ मुख पे ता निसार कर मिहरो माहको । __जब सौदा अरबी-फारसीको छोड़कर मामूली बोलचालकी तरफ झुकते थे तो उनकी भाषा इतनी सरल हो जाती थी--- अजब तरहको है वह नार । उसका क्या मैं करूं विचार !। दिन वह डोले पोके मङ्ग । लाग रहे निस वाके अंग ।। दिया बरे तो वह शरमाय । ढकसे सरक दूर हो जाय ।। एक नार भौरा सी काली । कान नहीं वह पहने बाली ।। नाक नहीं वह संघे फूल । जितना अरज उतना ही तल । नर बत्तीस एक है नारी । जगमं देखो सबकी प्यारी ।। करलो मनमें सोच विचार । पुरुष मरे पर जीवे नार ।। इसी प्रकार सौदाकी पहेलियों और दूसरी हंसी-दिल्लगीकी चीजोंमें फारसी अरबी शब्द कम हैं। पहले उ में बहुत हिन्दी शब्द थे, पर पीछे निकाले गये। सौदा तनिक, टुक आदि शब्द बोलता था --- घोड़ेको देन दो लगाम, मुंहको तनिक लगाम दो।। उर्दूका प्रथम कवि वली दक्षिणी था । इसीसे उसकी कवितामें हमन, कीता, आदि शब्द होते थे। सौदाने भी दक्षिणी ढङ्गकी हिन्दीमें कविता की हैं, जालिमा ढादिये तुमनाने इमामतके सुतून ॥ घर पयम्बरका किया तुमने हदम क्या कीता ।। नालिमांकी जगह 'जालिमा' कहकर सम्बोधन करना, तुमनेकी जगह [ १४४ ]