हिन्दीमें बिन्दी 'सरस्वतो' पत्रिकाके देखनेहीसे हमें नागरी प्रचारिणीवालोंकी 'बिन्दी' का खयाल आया है। उक्त पत्रिकामें लेखकोंके लिये जो नियम लिखे गये हैं, उनके पांचव नियममें लिखा है-"लेख लिखने में उन्हीं नियमोंका पालन हो, जो काशी नागरीप्रचारिणी सभाने सर्व-सम्मतिसे निश्चय किया है ।” इसमें ऊपर 'नियमों' है और नीचे किया है' है । ___ यदि इसी नियमपर हिन्दोवाले चल पड़े, तो बीचहीमें बेड़ा पार हो जावेगा। इसीसे हमें सावधान करना पड़ा है कि लेखक लोग आंख खोलकर चलं, नागरी-प्रचारिणीकी लकड़ी पकड़करही न चलें। सर- स्वती' पत्रिकामें “मोगल" शब्द लिवकर 'ग' के नीचे बिन्दी लगाई गई है। बिन्दोका तो खयाल किया है, परन्तु शब्दके ठीक उच्चारणका कुछ भी विचार नहीं किया कि शब्द “मुगल" है-“मोगल" नहीं है। गीतका बहुवचन 'गीत' करके उसे स्त्रीलिङ्ग लिखा है। नागरी प्रचारिणीके नियम- पर चलनेसे पुलिङ्ग गोतको स्त्रीलिङ्ग लिखना पड़ेगा। 'बाजार' शब्दका उच्चारण नागरी-प्रचारिणीवाले जानते थे, इससे उसके नीचे विन्दी लगा दी है। परन्तु 'तहकीकात' शब्द 'सरस्वती' के पांचवें पृष्ठपर दो जगह आया है, वह दोनों जगह बिन्दो-शून्य है। यह चार बिन्दियाँ हमारो नागरी-प्रचारिणी सभाके माथे हुईं। ___'सरस्वती' में एक जगह शेख सादीका नाम आया है। शेखमें जो 'ख' है, उसके नीचे बिन्दी है ; परन्तु शादीके बीच में जो ऐन' है, उसका लेखकने 'गैन' कर दिया है। उधर शेख शब्द भी 'शेख' नहीं है, वह अरबी भाषाका शब्द है -वह होता है 'शेख' । जब शुद्ध उच्चारण करना था, तो इन शेखजी बिचारे को मिट्टी खराब क्यों की ? उर्दूमें 'ते' होती है, तोय' होती है। दोनोंके उच्चारणमें नागरी-प्रचारिणी सभाने क्या भेद रखा है, सो हमें मालूम नहीं। 'से', 'सीन', और 'स्वाद', इन तीन अक्षरोंका उच्चारण एकही-सा होता है। इसमें आपलोग क्या भेद [ १५१ ]
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