पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/१६९

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गुप्त-निबन्धावली राष्ट्र-भाषा और लिपि = रखना चाहते हैं ? 'अलिफ' और 'ऐन' का भी कुछ भेद नहीं मालूम पड़ा। 'सरस्वती' पत्रिकामें एक जगह 'अरक' लिखा है। इसी प्रकारकी घसीटनमें हिन्दीको क्यों फंसाया जाता है, इस बातका उत्तर नागरी- प्रचारिणीवालोंको देना चाहिये। तब वह दूसरोंके लिये अपने चलाये रूलपर चलनेका डंका बजा सकते हैं ! --भारतमित्र १९-२-१९०० ई. हिन्दीकी उन्नति गन्दीभापाके सम्बन्धमें शुभ केवल इतनाही देखनेमें आता है कि ... कुछ लोगोंको इसे उन्नत देखनेकी इच्छा हुई है। किन्तु केवल इच्छा करनेसे कार्य सिद्ध नहीं होता है। यदि इच्छा करनेहीसे कार्य पूरा होता हो तो शायद पृथ्वी-लखपति, करोडपति, जमींदार,राजा-महाराजा- ओंसे भर जाती। क्योंकि अपरमित धनको इच्छा न रखनेवाला संसारमें कोई भी मनुष्य नहीं है। ___इच्छा होनेसे उसको पूरा करने के लिये इच्छाके साथ-साथ और भी एक वस्तु जरूरी है। उसका नाम है चेष्टा। किन्तु हिन्दीकी उन्नति- की इच्छा रखनेवालोंमेंसे आज तक कितने आदमियोंने कितनी चेष्टा को है ? हम उन्नति-उन्नति चिल्लानेवालोंसे विनयपूर्वक पूछते हैं, भाइयो, छातीपर हाथ रखकर कहिये तो सही, आपने मातृभाषाकी उन्नतिके लिये कितनी चेष्टा की है ? आप कहेंगे, यह देखो, हमने अखबार जारी किया है। आप कहेंगे यह देखो, हमने सरकारी अदालतोंमें नागरी अक्षर जारी कराये हैं। आप कहेंगे कि हमने बड़ी-बड़ी चेनासे बङ्गदेशकी यूनिवर्सिटीकी एल० [ १५२ ]