हिन्दीकी उन्नति
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ए० परीक्षामें हिन्दीके लिये भी कुछ जगह देनेके लिये शिक्षाधिकारियों-
को लाचार किया है । किन्तु क्या यही सब हिन्दीकी उन्नतिके लक्षण हैं ?
____ इस लेखके लेखकने मिडल क्लासके अतिरिक्त हिन्दी नहीं पढ़ी थी,
किन्तु आज वह हिन्दी-साहित्यके लेख लिग्वनेका दावा रखता है, बड़े
बड़े लोगोंको हिन्दीके सम्बन्धमें दो बात कह कर लज्जित नहीं होता है।
इसके क्या माने हैं ? क्या इस लेग्वकको प्रकृतिका दोप है, अथवा
मिडल क्लास तक पढ़नाही हिन्दी-विद्या पूर्ण रूपसे प्राप्त करनेके लिये
यथेष्ट है ? मालूम होता है कि यह पिछली बात सही है। किसी लाइ-
वरी में जाइये, देखेंगे कि अलमारीकी अलमारी अंग्रेजी किताबोंसे
भरी हुई हैं। काव्य, अलङ्कार, न्याय, दर्शन, विज्ञान प्रभृतिमेंसे चाहे
जिस विपयकी पुस्तकोंको आलोचना करनेमें जीवन गवाँ डालिये,
किन्तु किताबोंका शेप नहीं होगः। और संस्कृत विद्या ? संस्कृत विद्या-
के हर एक विभागमें केश पकाये हुए कितने सुविज्ञ लोग आज तक
काशीकी विद्यापुरीमें विद्यामान हैं, अब तक विद्याही सीख रहे हैं,
विद्याका पार नहीं देख सकते। किन्तु हमारी हिन्दी-विद्या मिडल क्लास
तक पढ़ने में प्रायः पूरी हो जाती है। आगे और किताब नहीं कि
पढ़कर विद्या बढाव।
___ पूर्वज कवियोंके हिन्दी काव्य-साहित्यकी बात नहीं कहेंगे, प्रचलित
गद्य पुस्तकही भाषाकी उन्नति विचारनेका निदान गिनी जाती हैं।
वह किताब हिन्दीमें कितनी हैं ? यदि स्वर्गीय बाबू हरिश्चन्द्रकी
अमृतमयी लेखनी कुछ भिन्न भापाकी पुस्तकोंके अनुवाद प्रभृति न
रचती तो आज तक शायद हिन्दी-गद्य साहित्यका नाम तक
सुननेमें नहीं आता। वही आदि वही अन्त। बाबू हरिश्चन्द्रके पीछे
और किसने हिन्दीकी उन्नतिके लिये उनका जैसा उत्साह दिखाया है ?
सिर्फ यही नहीं, उनकी किताब ही कितनी बिकी हैं ? जो लोग आज
पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/१७०
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