गुप्त-निबन्धावली राष्ट्र-भाषा और लिपि गुजराती हरुफको खैरबाद कहकर नागरी हरुफ इख्तियार करें। हिन्दुओं- के हाथमें, जो गुजराती अखबार या रिसायल हैं, अब उनके अनवान१५ नागरीमें होते हैं, और मज़ामीन गुजरातीमें। यानी वह अपने नाजरीनको नागरी पढ़नेका रब्त करा रहे हैं। बहुतसी गुजराती किताब अब नागरीमें तबआ१६ होने लगी हैं। गुजरातियोंकी संस्कृत किताबें नागरीमें तबआ होती हैं, और उनका गुजराती तर्जुमा गुजराती हरुफ़में। बंगालियोंको अभी अपने हरुफपर ज़िद है। बंगला हरुफ़ नागरी हरुफ़के बिलकुल हमशक्ल हैं। बंगाली उन्हें आसानीसे छोड़ सकते और नागरी इख्तियार कर सकते हैं ; मगर अभी बंगाली अपने हरुफ़की मोहब्बत नहीं छोड़ते हैं। वह संस्कृत और बंगला दोनों बंगला हरुफही में लिखते हैं, मगर संस्कृत किताब बंगाली भी ज्यादातर देवनागरी हरुफमेंही तबआ करते हैं। खैर, उनकी रही सही ज़िद भी जल्द रुखसत होगी। ___ बंगालियोंमें सर गुरुदास और जस्टिस मित्र जैसे नागरीके तरफदार पैदा हो गये हैं। बंगला किताब नागरीमें तबआ होने लगी हैं। बंगाली लोग हिन्दी और नागरी सीखने लगे हैं। बंगालियों में पहिले भी ऐसे लोग हो गये हैं, जिनका खयाल था, कि नागरी एक दिन कुल हिन्दम रस्मुलखत होगी और हिन्दी हिन्दोस्तान भरकी एक जुबान । यह खयाल खुद बाबू बंकिमचन्द्र चटर्जी मरहूमका है, जिनका “बन्देमातरम्' आजकल हिन्दुस्तान भरमें गूंज रहा है। दो साल हुए बंकिम बाबूके उस तवील।७ मज़मूनका ज़रूरी हिस्सा हिन्दी होकर 'भारत-मित्र' म तबआ हुआ था। हिन्दुस्तानके पुराने हरुफ़पर पंडित गौरीशंकर ओझा उदयपुरके विकोरियाहालके लाइब्रेरियनने कई साल हुए, एक उम्दा किताब लिखी १५-हेडिंग । १६–मुद्रित । १५–सम्बा, बहुत बड़ा । [ १६८ ]
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