पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/१८६

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हिन्दुस्तानमें एक रस्मुलखत हैं, जिसका नाम है, "प्राचीनलिपिमाला"। जितने किस्मके पुराने हरुफ़ हिन्दुस्तानमें जहां-तहां मिले, सब इस किताबमें जमाकर दिये हैं। राजपूतानाके आप बड़े नामी मुहक्किक१८ हैं । अढ़ाई हज़ार साल तक- के पुराने हरुफ़ आपने पढ़ डाले हैं। आप अपनी किताब दूसरी बार छपवाया चाहते हैं। जो पहलीबार वालीसे बहुत जामअ ।९ होगी, क्योंकि इस अर्से में उन्होंने और भी बहुत-सी कुतब और पत्थरोंपर लिखे मज़ामीन पढ़डाले हैं। उनकी किताब देखनेसे मालूम होता है, सबसे मुकम्मिल नागरी हरुफ़ हैं। यही वजह है, कि हिन्दके हर सूबाके हिन्दू नागरी हरुफ़ इख्तियार कर रहे हैं । इसलिये उम्मीद है, बंगाली भी जल्द ज़िद छोड़ देंगे। मदरासमें दो जुबाने हैं, उनके नाम हैं, तामिल और तेलगू । इनमें- से तेलगूका लगाव संस्कृतसे है, और तामिलका बहुत कम । ताहम इस जुबानके एक अच्छे माहवार रिसालेमें देखा गया कि और सब मज़ामीन तो तामिल हरुफ़में हैं, मगर जहाँ संस्कृतसे कुछ लेना पड़ा है, वहाँ देव- नागरी हरुफ़से काम लिया है और तेलगू जाननेवाले तो नागरी हरुफ़ ज़रूर ही सीखते हैं। मदरासमें और भी दो जुबाने हैं, जो तेलगू और तामिलसे कम फैली हुई हैं। यह अमर भी क़ाबिले गौर है कि मदरास- से एक हफ्ताबार संस्कृत अखबार निकलता है। यह नागरी हरुफ़में होता है और एक हिन्दी रिसाला वहांसे निकला है, जिसको एक मदरासीने जारी किया है और वही उसका एडीटर है। संस्कृतकी जो किताब मदरासमें तबआ हुई हैं, सब देवनागरी हरुफ़में हैं। क्योंकि मदरासी हरुफ़ संस्कृतके कामके नहीं। उनमें संस्कृत नहीं लिखी जा सकती। इसी तरह हिन्दुस्तानके तालीम-याफ्तालोग कोशिश कर रहे हैं कि जिस तरह युरोपके मुख्तलिफ़ मुमालिक२० और मुतलिफ़ जुबानों- १८-खोज करनेवाला, अनुसन्धानकर्ता । १९-बड़ी बृहत् । २०-विभिन्न देश। [ १६९ ]