पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/१८७

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गुप्त-निबन्धावली राष्ट्र-भाषा और लिपि के लिये एक ही रस्मुलखत है, इसी तरह हिन्दुस्तानमें भी देवनागरी हरुफको एक रस्मुलखत बनाया जाय । ___ २६ दिसम्बर सन् १६०५ ई०को कांग्रेस हो जानेके बाद बनारसमें वहाँकी नागरी-प्रचारिणी सभाकी तरफ़से हिन्दमें एक रस्मुलखतके लिये खास जलसा हुआ था। मिस्टर रमेशचन्द्र दत्त-सी० आई० ई०दीवान- बदौड़ा इसके प्रेसीडेन्ट थे। इस जलसेमें नामी-नामी आदमियोंने जो कुछ कहा उसका खुलासा इस तरह है:- यह जलसा चाहता है कि हिन्दमें एक रस्मुलखत जारी हो । बहुत अर्सेसे कुछ लायक़ लोग इसपर गौर कर रहे हैं। मुझे याद है कि एक दफ़ा बंगालमें हिन्दोस्तान भरके लिये रोमन हरुफ़ वतौर एक रस्मुलखतके कबूल करनेकी तहरीक२१ हुई थी, वह बेशक वाहियात थी। इसीसे चली भी नहीं। मगर आप चाहते हैं कि नागरी हरुफ़ हिन्द भरमें बतौर एक रस्मुलखतके ज़ारी हों। साहबो ! शुरूमें लोग एक नया रस्मुलखत कबूल करना मुशकिल समझगे। बंगालियोंका खयाल है कि नागरी हरुफ़ बहुत मुशकिल हैं। वह उन्हें सीख नहीं सकते । गुजरात, बड़ौदा और दूसरे मुक़ामातमें भी नागरी हरुफ़ बहुत आहिस्ता-आहिस्ता फैल रहे हैं। मगर मैं अपने तजुर्बेसे कहता हूँ कि अगर एक दफ्ना आप नागरी हरुफ़ सीखनेपर कमरबस्ता२२ हो जायँ तो मालूम होगा कि वह कैसे आसान हैं। जब मैं सिविलसर्विसका इतिहान देने विलायत गया था, तो नागरीका एक हरुफ़ भी न जानता था। कुछ संस्कृत जानता था, वह भी बंगला हरुफमें लिख सकता था। मगर वहाँ बंगला हरुफकी परसिश२३ न थी और मैंने और मज़ामीनके साथ संस्कृत भी ली थी। मजबूरन मुझे नागरी हरुफ़ सीखने पड़े और तीन महीनेमें मैं नागरी उतनी ही जल्दी लिखने लगा जितनी जल्दी बंगला लिखता था। २१–प्रचार। २१–तैयार, हक। २३-पूछ। [ १७० ]