पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/१८८

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हिन्दुस्तानमें एक रस्मुलखत - - -- महाराजा साहब बड़ौदाकी इधर बड़ी तवज्जह है और कई सालसे कोशिशकर रहे हैं, कि उनकी रियासतमें नागरी हरुफ़ जारी हों। बड़ौदामें एक सरकारी गज़ट है, जिसका नाम “आज्ञापत्रिका” है। इसका एक हिस्सा गुजराती हरुफ़में छपता है और दूसरा नागरीमें। ज़बान दोनोंकी गुजराती है। बड़ौदाके अहलकारोंमें ऐसे लोग बहुत कम हैं, जो नागरी हरुफ़ वैसे-ही तेजीसे न लिख सकते हों, कि जिस तेज़ीसे वह गुजराती लिखते हैं। इससे ज़ाहिर है, कि अगर एक जुबान हम जानते हों और उसे किसी जदीद२४ रस्मुलखतमें लिखनेकी आदत डालं तो बहुत मुशकिल बात नहीं है- पचास साल पहिले जरमनीकी सब किताब पुरानी ज़रमन हरुफ़- में छपती थीं, मगर अब उन्हें युरोपके दूसरे मुमालिकके लोगोंसे ताल्लुक रखनेका खयाल हुआ है। इससे पचीस साल गुज़िश्ता से उनकी किताब रोमन हरुफ़में तबआ होने लगी हैं । इससे उनको कुछ मुशकिल वाकै न हुई। हमलोगोंको भी अहले जरमनीकी तक़लीद२६ करना वाजिब है। खयाल रहे कि हमारा ऐसा खयाल उस वसीअ२७ खयालका एक टुकड़ा है, जो हम सब अहलेहिन्दको एक करना चाहता है। या एक दूसरे- को बहुत करीब-करीब ला देना चाहता है । ___ इसमें कामयाबी हासिल करनेका पहिला असूल यह है कि हर ज़बानकी मकबूल२८ और हरदिलअज़ीजर किताब नागरी हरुफ़में छापकर शाया की जायँ । ज़रूर शुरूमें ऐसी किताबकुछ अर्से तक नागरीदा लोगोंही में बिकेंगी। मगर जल्द ही दूसरे लोगोंमें भी यह फैल जायंगी। मिस्टर तिलकने कहा- साहबो! इस मजलिस ३० की गर्ज़ प्रेसीडेन्ट साहबने समझा दी २४-नई, अन्य । २५-बीते पहले । २६-नकल। २७ -बहुत बड़ेव । २८-मानी हुई। २९-सर्वप्रिय । ३०-सभा। [ १७१ ]