गुप्त-निबन्धावली राष्ट्र-भाषा और लिपि है। चूंकि डेढ़ घंटेके अन्दर दस पीकरोंको बोलना है, इससे मैं बहुत मुख्तसिरमें कुछ कहना चाहता हूँ। सबसे पहिले तो यह ज़हनशीन३१ करना चाहिये कि यह खयाल सिर्फ शुमालीहिन्दमें ही एक रस्मुलखत जारी करनेके लिये नहीं है। बल्कि यह एक आला क़ौमी खयालका एक हिस्सा है, जिसका मतलब हिन्दुस्तान भरमें एक जुबान जारी करनेका है। क्योंकि क़ौमियत तैयार करनेके लिये एक जुबानका होना लाज़मी है। एक जुबान होनेके तुफ़ैलसे ३२ ही-आप अपने खयालात दूसरोंपर ज़ाहिर कर सकते हैं। मनुजीने भी कहा है कि हरएक शैका इल्म ३३ ज़बानहीसे होता है। बस, अगर क़ौमको एक धागेमें बान्धना है तो पहिले सबके लिये एक जुबान पैदा करो। इससे ज़बरदस्त ताक़त दूसरी नहीं है। यही इस मजलिसका असूल है। सिर्फ शुमाली हिन्दमें नहीं, हम लोग रफ्ता रफ्ता दक्खन और मदरासको लेकर कुल हिन्दमें एकही रस्मुलखत जारी करना चाहते हैं। बहुत मेहनत करनेसे सब मुशकिलं आसान हो सकती हैं। पहिली मुश्किल तारीखी है। आर्य और गैर-आर्य लोगोंकी पुरानी और हिन्दू-मुसलमानोंकी मौजूदा अदावत और नफ़रतने ज़बानसे मुताल्लिक इत्तफ़ाकको ज़ाइल ३४ कर डाला है। शुमालीहिन्दके हिन्दू ज्यादा संस्कृत निकली हुई आर्य जुबान ही बोलते हैं। मगर दक्खनी जुबान द्राविड़से निकली हैं। उनका फ़र्क लफ़ज़ोंहीमें नहीं, हरुफ़में भी है, जिनमें कि वह लिखे जाते हैं। फिर उर्दू और हिन्दीका झगड़ा है । जिनको इन सूबाजातमें इस कद्र अहमियत३५ दी गई है। हमारी तरफ़ मूड़ी या घसीट चलती है, जो लिखनेमें बहुत इस्तेमाल होती है। यह रस्मुलखत नागरीसे अलग समझा जाता है। मगर अब हमारे अखबार और किताब नागरीहीमें तबआ होते हैं- ३१-समझ लेना । ३२-प्रताप । ३३ - ज्ञान । ३४-लष्ट । ३५-महत्व । [ १७२ ]
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