बङ्ग विच्छंद पहाड़ पर नहीं रख दिया गया और शिलांग उड़कर हुगलीके पुलपर नहीं आबैठा। पूर्व और पश्चिम बङ्गालके बीच में कोई नहर नहीं खुद गई और दोनोंको अलग अलग करनेके लिये बीच में कोई चीनकीसी दीवार नहीं बन गई है। पूर्व बङ्गाल, पश्चिम बङ्गालसे अलग होजाने पर भी अंग्रेजी शासनहीमें बना हुआ है और पश्चिम बङ्गाल भी पहलेकी भांति उसी शासनमें है। किसी बातमें कुछ फर्क नहीं पड़ा। खाली खयाली लडाई है। बङ्गविच्छेद करके माई लाडने अपना एक खयाल पूरा किया है। इस्तीफा देकर भी एक खयालही पूरा किया और इस्तीफा मंजूर होजाने पर इस देशमें पड़ रहकर भी श्रीमानका प्रिन्स आफ वेल्सके स्वागत तक ठहरना एक खयाल मात्र है। कितनेही खयाली इस देशमें अपना खयाल पूरा करके चले गये। दो सवादो सौ साल पहले एक शासकने इस बङ्गदेशमें एक रूपयेके आठ मन धान बिकवाकर कहा था कि जो इससे सस्ता धान इस देशमें बिकवाकर इस देशके धनधान्य-पूर्ण होनेका परिचय देगा, उसको मैं अपनेसे अच्छा शासक समझंगा । वह शासक भी नहीं है, उसका समय भी नहीं है। कई एक शताब्दियोंके भीतर इस भूमिने कितनेही रङ्ग पलटे हैं, कितने ही इसकी सीमाएं हो चुकी हैं। कितनेही नगर इसकी राजधानी बनकर उजड़ गये। गौड़के जिन खण्डहरोंमें अब उल्लू बोलते और गीदर चिल्लाते हैं, वहाँ कभी बाँके महल खड़ थे और वहीं बङ्गदेशका शासक रहता था। मुर्शिदाबाद जो आज एक लुटाहुआसा शहर दिखाई देता है, कुछ दिन पहले इसी बङ्गदेशकी राजधानी था और उसकी चहल पहलका कुछ ठिकाना न था। जहाँ घसियारे घास खोदा करते थे, वहाँ आज कलकत्ता जैसा महानगर बसा हुआ है, जिसके जोड़का एशियामें एक आध नगरही निकल सकता है। अब माई लाडके बङ्गविच्छेदसे ढाका, शिलाङ्ग और चटगांवमेंसे हरेक राजधानीका । २१९ ]
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