गुप्त-निबन्धावली चिट्ठे और खत बालक उसने उस पुरुषको अर्पण किया और कलेजेपर हाथ रख कर बैठ गई। सुध आनेके समयसे उसने कारागारमें ही आयु बिताई है। उसके कितने ही बालक वहीं उत्पन्न हुए और वहीं उसकी आंखोंके सामने मारे गये। यह अन्तिम बालक है। कड़ा कारागार, विकट पहरा, पर इस बालकको वह किसी प्रकार बचाना चाहती है। इसीसे उस बालकको उसके पिताकी गोदमें दिया है कि वह उसे किसी निरापद स्थानमें पहुंचा आवे । ___वह और कोई नहीं थे, यदुवंशी महाराज वसुदेव थे और नवजात शिशु कृष्ण । उसीको उस कठिन दशामें उस भयानक काली रातमें वह गोकुल पहुँचाने जाते हैं। कंमा कठिन समय था। पर दृढ़ता सब विपदोंको जीत लेती है, सब कठिनाइयोंको सुगम कर देती है। वसुदेव सब कष्टोंको सह कर यमुना पार करके भीगते हुए उस बालकको गोकुल पहुंचा कर उसी रात कारागारमें लौट आये। वही बालक आगे कृष्ण हुआ, ब्रजका प्यारा हुआ, मां-बापकी आंखोंका तारा हुआ, यदुकुल मुकुट हुआ। उस ममयकी राजनीतिका अधिष्ठाता हुआ। जिधर वह हुआ उधर विजय हुई, जिसके विरुद्ध हुआ उसकी पराजय हुई। वही हिन्दुओंका सर्वप्रधान अवतार हुआ और शिवशम्भु शर्माका इष्टदेव, स्वामी और सर्वस्व । वह कारागार भारत मन्तानके लिये तीर्थ हुआ। वहाँकी धूल मस्तकपर चढ़ानेके योग्य हुई.---- बर जमीने कि निशानेकफ पाये तो वुवद । सालहा सिजदये माहिब नजरां ख्वाहद बूद ।। * तव तो जेल बुरी जगह नहीं है । “पञ्जाबी" के स्वामी और सम्पा- दकको जेलके लिये दुःख न करना चाहिये । जेलमें कृष्णने जन्म
- जिस भूमिपर तेरा पचिन्ह है, दृष्टिवाले सैकड़ों वर्षतक उसपर अपना
मस्तक टेकेंगे।