पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/२५५

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गुप्त-निबन्धावला चिट्टे और खत हमें उसके लिये जेल भेज तो वैसी जेल हमें ईश्वरकी कृपा समझकर स्वीकार करना चाहिये और जिन हथकड़ियोंसे हमारे निर्दोष देश- बान्धवोंके हाथ बन्ध, उन्हे हेममय आभूषण समझना चाहिये। इसी प्रकार यदि हमारे ईश्वरमें इतनी शक्ति न हो कि वह हमारे राजा और शासकोंको हमारे अनुकूल कर सके और उन्हें उदारचित्त और न्यायप्रिय बना सके तो इतना अवश्य करे कि हमें सब प्रकारके दोषोंसे बचाकर न्यायके लिये जल काटनेकी शक्ति दे, जिससे हम ममझ कि भारत हमारा है और हम भारतके। इस देशके सिवा हमारा कहीं ठिकाना नहीं । रह इसी देशमें, चाहे जेलमें चाहे घरमें। जबतक जिय जिय और जब प्राण निकल जाय तो यहींकी पवित्र मट्टीमें मिल जाय ।