पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/२५७

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गुप्त-निबन्धावली चिट्ठे और खत ही बातें मैंने जान ली हैं, जमानेके कितने ही उलट-पलट देखे और समझे उसकी चालपर खूब निगाह जमाकर देखा, मगर कहीं नवाबीको खड़ा होनेकी गुञ्जाइश न पाई। लेकिन देखा जाता है कि तुम्हारे जीमें नवाबीकी खाहिश है । तुम बङ्गालके हिन्दुओंको धमकाते हो कि उनके लिये फिर शाइस्ताखांका जमाना ला दिया जायगा ! भई वल्लह ! मैंने जबसे यह खबर अपने दोस्त नवाब अब्दुल्लतीफखांसे सुनी है तबसे हँसते-हँसते मेरे पेटमें बल पड़-पड़ जाते हैं । अकेला मेंही नहीं हँसा, बल्कि जितने मुझसे पहले और पीछेके नवाब यहां वहिश्तमें मौजूद हैं सब एकबार हँसे । यहाँतक कि हमारे सिका सूरत बादशाह औरङ्गजेब भी जो उस दुनियामें कभी न हंसे थे इस वक्त अपनी हंसीको रोक न सके । हँसी इस बातकी थी कि बेसमझ ही तुमने मेरे जमानेका नाम लिया है । मालूम होता है कि तुम्हें इल्म तवारीखसे बहुत कम मस है। अगर तुम्हें मालूम होता कि मेरा जमाना बङ्गालियोंके बनिस्बत तुम फरङ्गियोंके लिये ज्यादा मुसीबतका था, तो शायद उसका नाम भी न लेते। तुमको मालूम होना चाहिये कि यहां बहिश्तमें भी अंग्रेजी अखबार पढ़े जाते हैं । मेरे जमानेमें तो तुम लोगोंकी गिटपिट बोलीको खयालही में कौन लाता था, पर मैंने मालूम किया है कि मेरे बाद भी उसकी कुछ कदर न थी। यहांतक जि गदरके जमाने में दिल्लीके मुसलमान तुम्हारी बोलीको गुड डामियर बोली कहा करते थे। मगर इस वक्त यहां भी तुम्हारी बोलीकी जरूरत पड़ती है क्योंकि अब वह कुल हिन्दुस्तानमें छाई हुई है और हिन्दुस्तानकी खबरोंको जाननेका यहां वालोंको भी शौक रहता है। इसीसे अंग्रेजी अखबारोंकी जरूरी खबरें यहाँ वाले भी नवाब अब्दुल्लतीफखां वगैरहसे सुन लिया करते हैं । ___ भाई नवाब फुलर ! मैं सच कहता हूं कि मेरा जमाना बुलाना तुम कभी पसन्द न करोगे। मुझे ताज्जुब है कि किसी अंग्रेजने तुम्हारे [ २४० ]