गुप्त-निबन्धावली चिठे और खत काम है, जिसमें हम हैं। सदा कोई रहा न रहेगा। नेकनामी या बद- नामी रह जावेगी। तुम जुल्मसे बङ्गालियोंको मत रुलाओ, वल्कि ऐसा करो जिससे तुम्हारे लिये तुम्हारे अलग होनेके वक्त बङ्गाली खुद रोवं। फकत । शाइस्ताखां-अज जन्नत । ( भारतमित्र, १८ अगस्त सन् १९०६ ई. ) शाइस्ताखांका खत (२) comme- फुलर साहवके नाम । भरादरम् फुलरजङ्ग ! तुम्हारी जङ्ग खत्म हो गई। यह लड़ाई तुम साफ हारे। तुमने अपनी शमशीर भी म्यानमें कर ली। इमसे अब तुम्हारे अलकाबमें “जङ्ग” जोड़नेकी जरूरत नहीं है। पर जिस तरह तुम्हारी नवाबी छिन जानेपर भी हिन्दुस्तानी सरकार तुम्हें बम्बईमें विलायती जहाजपर तुम्हारे मामूली नवाबी ठाटसे चढ़ा देना चाहती है, उसी तरह मैंने भी मुनासिब समझा कि उस वक्त तक तुम्हारा अलकाब भी बदस्तूर रहे। इसमें हर्ज ही क्या है ! सचमुच तुम्हारी हुकूमतका अंजाम बड़ा दर्दनाक हुआ, जिसे तुमने खुद दर्दनाक बताया है। मुझे उसके लिये ताज्जुब नहीं, क्योंकि वह अटल था। पर अफसोस है कि इतना जल्द हुआ ! मैं जानता था कि ऐसा होगा, उसका इशारा मेरे पहले खतमें मौजूद है। पर यह खयाल न करता था कि दस ही महीनेमें तुम्हारी नकली नवाबी तय हो जायगी। वल्लाह, भानमतीके तमाशेको भी मात किया। अभी गुठली [ २४४ ]
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