पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/२६२

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शाइस्ताखाका खत थी, जरासा पानी छिड़क कर दो छटांक मट्टीमें दबा देनेसे फूट निकली। दो पत्ते निकल आये। चार हुए। बहुत हुए। पेड़ हुआ, फल लगे। थोड़ी देरमें वही गुठली और वही टीनका लोटा मियां मदारीके हाथमें रह गया। तुमने यह सुनकर कि नवाबोंके कई-कई बेगम होती थीं, अपनी रिआयामेंसे दो बेगम फर्ज की। मगर उनमें जो होशियार थी, उसने तुम्हें मुंह न लगाया और न तुम्हारी नवाबी तसलीम की। जो भोली थी, उसे तुमने रिझाया । पर वह बेचारी अभी यह समझने न पाई थी कि तुम उसके हुस्नोसीरतपर नहीं रीझे, बल्कि होशियार बेगमको बे- एतनाईसे कुढ़ कर मतलबकी मुहब्बत दिखाते थे, जिसकी बुनियाद निहायत कमजोर थी । अफसोस ! तुम्हारी यह शान भी न चली। सिर्फ दो बेगमोंको भी तुम न रिझा सके। सच है, कहीं बुलहवसी भी मुहब्बत हो सकती है ! ___ और तुमने सुना होगा कि नवाब सख्ती बहुत किया करते थे। उनके अमलमें सब तरहकी अन्धाधुन्ध चल सकती थी। इसीसे तुमने भी सख्ती और अन्धाधुन्ध शुरू की। अपनी जबरदस्तीसे तुमने उस जोशको रोकना चाहा, जो अपने मुल्ककी बनी चीजोंके फैलाने और गैरमुल्ककी चीजोंके रोकनेके लिये बङ्गालेमें बड़ी तेजीसे फैल रहा था। तुमने इस वातपर खयाल न किया कि जो जोश तुम्हारे अफसरेआला- की सख्तीसे पैदा हुआ है, वह सख्ती और जबरदस्तीसे कैसे दब सकता है ? शायद तुमने समझा कि वह पूरी सख्तीसे दवाया नहीं गया, इसीसे फैला है, तुम्हारी सख्ती उसे दबा देगी और जो काम तुम्हारे खुदावन्दसे न हुआ, उसके कर डालनेकी बहादुरी तुम हासिल कर लोगे। मगर अब तुम्हें अच्छी तरह मालूम हो गया होगा कि ऐसा समझने में तुमने कितनी बड़ी गलती खाई । तुम्हारे आला अफसरने यह ओहदा तुम्हारी [ २४५ ]