पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/२६७

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गुप्त-निबन्धावली चिट्टे और खत पूरा हुआ और तुम्हें एक अच्छी हालतमें देखलेनेके बाद मैंने खुदाको जान सौंपी। ___ उस दिन मेरे मजारपर आकर तुमने निढाल होकर अपने आंसुओं- के मोती बखेर दिये। उस वक्तकी अपने दिलकी कैफियत क्या जाहिर करूं कि मुझपर क्या गुजरती थी और तबसे मुझे कितनी बेचैनी है। हाय ! चि मिकदार खू दर अमद खुर्दा बाशम । कि बर खाकम आई ओ मन मुर्दा बाशम ।। काश ! मुझमें ताकत होती कि मैं उस वक्त तुमसे बोल सकता और तुम्हारे पास आकर तुम्हें गोदमें लेकर कलेजा ठण्डा करता और तुम्हारे फूलसे मुखड़ोंसे आंसू पोंछकर तुम्हें हँसानेकी कोशिश कर सकता । मगर आह ! यह सब बात नामुमकिन थीं, इससे मुझपर जो कुछ बीती वह मैं ही जानता हूं। मर कर भी मुझे आराम न मिला ! इस नई दुनियामें आकर भी मुझे कल न मिली । ___अजीजो ! जिस हालतमें तुम इस वक्त पढ़े हो, इसका मुझे जीते जी ही खटका था। खासकर अपनी जिन्दगीके अखीर दिनोंमें मुझे बड़ाही खयाल था । इसके इन्सदादकी कोशिश भी मैंने बहुत कुछ की, मगर खुदाको मंजूरन थी, इससे काम बनकर भी बिगड़ गया। तुममें से बहुतों- ने सुना होगा कि मैंने अपनी मौजूदगीहीमें यह फैसला कर दिया था कि मेरे बाद महमूद तुम्हारे कालिजका लाइफ सेक्रेटरी बने। इसपर वह शोरिश मची और वह तूफाने बेतमीजी बरपा हुआ कि अल अमान ! मेरी सब करनी-धरनी भूल कर लोग मुझे खुदगरज और मतलबी कहने लगे। उस कौमी कालिजको मेरे घरका कालिज बताने लगे और ताने देने लगे कि मैं अपने बेटेको अपना जानशीन बनाकर कौमसे दगा करता हूं। मुझपर "अहमदकी पगड़ी महमूदके सिर" की फबती उड़ाई [ २५० ]