सर सय्यद अहमदका खत
गई । पर मैंने कुछ परवा न की। सय्यद महमूदको लाइफ सेक्रेटरी
बनाया। अपने जीतेजी एक अपनेसे भी बढ़कर लायक सेक्रेटरी तुम्हारे
कालिजको दे गया था। पर अफसोस उसकी उमरने वफा न की। मेरे
थोड़े ही दिन पीछे वह भी मेरे ही पास चला आया।
इस वक्त तुमपर जो कुछ गुजरी है, अगर मैं होता तो उसकी यह
शकल कभी न होती । न सय्यद महमूदकी मौजूदगीमें ऐसा करनेकी
किसीकी हिम्मत होती । मगर अफसोस हम दोनों ही नहीं ! जो हैं,
उनके वारेमें और क्या कहा जाय, अच्छे हैं ! कालिजके नसीब ! कोमके
नसीब ! अजीजो ! यह कालिज तुम्हारे लिये बना था। तुम्हीं उसमेंसे
निकाले जाते हो, तो यह किस काम आवेगा? उफ । मेरी समझ नहीं
आता कि मैंने तुम्हारे लिये यह दारुलउलूम बनाया था या गुलाम-
खाना ! तुम्हारे मौजूदा सेक्रेटरी क्या खयाल करते होंगे ?
मगर क्या पस्तखयालीका नतीजा पस्ती न होना चाहिये ? तुम्हारी
और तुम्हारे कालिजकी मौजूदा हालतका क्या मैं ही जिम्मेदार नहीं
हूं ? क्या यह इस वक्तका दर्दनाक नज्जारा मेरी चालका नतीजा नहीं
है ? हाँ ! यह जंजीर कौमी तरक्कीके पावोंमें अपने ही हाथोंसे डाली
गई हैं, दूसरा कोई इसके लिये कसूरवार नहीं ठहर सकता ! अगर
इबतिदासे अखीरतक मेरी चाल एक ही रहती तो यह खराबी काहेको
होती ? कौमी पस्तीका ऐसा सीन देखनेमें न आता !
न जिल्लतसे नफरत न इज्जतका अरमां।
मैं वही हूं, जिसने “असवाबे बगावत" लिखकर विलायत तकमें
खलबली डाल दी थी। इन सूबोंमें मैं ही पहला शख्स हूं, जिसने
अंग्रेजोंकों आम रिआयाकी रायका खयाल दिलाया । मैंने ही सबसे
पहले डंकेकी चोट यह जाहिर किया था कि अगर हिन्दुस्थानकी कौंसिलों-
में अंग्रेज, रिआयाके कायममुकाम लोगोंको शामिल करते तो कभी
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पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/२६८
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