पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/२६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

गुप्त-निबन्धावली चिट्ठे और खत गदर न होता । तुम कभी न समझना कि मैं अंग्रेजोंकी खुशामद किया करता था, या खुशामदको किसी कौमकी तरक्कोका जीना समझा करता। बल्कि मैंने सदा अंग्रेजोंसे बरावरीका बरताव किया है। कितने ही बड़े-बड़े अंग्रेज अफसर मेरे दोस्त रहे हैं, मैंने सदा उनसे दोस्ताना और बेतकल्लुफाना गुफ्ततू की है। कभी उनकी अफसरी या हाकिमीका रोब मानकर उनसे वरताव नहीं किया। खुदाकी इनायतसे सय्यद महमूदकी तबीयतमें मुझसे भी ज्यादा आजादी थी और साथ ही उसने मगरबी इल्मोंमें भी फजीलत हासिल की थी, जिससे उस आजादीकी चमक दमक और भी बढ़ गई थी। यही वजह थी कि मैंने महमूदको जीतेजी अपना कायममुकाम और तुम्हारे कालिजका सेक्रेटरी मुकर्रर किया था। अगर वह होता तो आज तुम लोगोंकी आजादी और इज्जत एक मामूली हिन्दुस्थानी कान्स्टबलकी हिमायतमें ठोकर न खाती फिरती और तुम्हें कालिजसे निकालकर कान्स्टबलोंको कालिजके अहातेमें न ला खड़ा किया जाता। ___ मेरे बच्चो ! मेरी एक ही कमजोरीका यह फल है, जिसे तुम भोग रहे हो और जिसके लिये आज मेरी रूह कब्रमें भी बेकरार है। मेरी उस कमजोरीने खुदगरजी और ग्खुशामदका दरजा हासिल किया। पर सच यह है, मैंने जो कुछ किया कौमकी भलाईके लिये किया, अपने फायदेके लिये नहीं। पर वैसा करना बड़ी भारी भूल थी, यह मैं कबूल करता हूं और उसका इतना खौफनाक नतीजा होगा, इसका मुझे ख्वाबमें भी खयाल न था। मैंने यही समझा था कि इस वक्त मसलहतन यह चाल चल ली जाय, आगे चलकर इसकी इसलाह कर ली जायगी। मैं यह न समझा था कि यह चाल मेरी कोमके रगोरेशमें मिल जायगी और छूटनेके बजाय उसकी खू बू और आदत बन जायगी। अफसोस ! खुद का अम खुद कर्दारा इलाजे नेस्त ! ( २५२ )