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पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/२७४

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उर्दू-अखबार पूछ होती थी , उत्सवोंपर उसके मालिकको राजा महाराजा निमन्त्रण करते थे। स्वर्गीय महाराजा रणवीरसिंहजीको मुंशी हरसुखरायपर बड़ी शुभदृष्टि थी । जब मुंशीजी काश्मीर जाते तो रुपयों और दुशालोंसे मालामाल होकर आते थे। पटियाला आदि पञ्जाबकी दूसरी रियामनं भी इसी प्रकार कोहेनूरकी मदद करती थी। कितनी ही रियास: घर बैठे रुपये भिजवा देती थीं, दक्षिण हैदराबाद तकसे मुंशीजीको निमन्त्रण आया, पर वह दूर समझकर न गये। बहुधा उनका दौरा पञ्जाब रियासतों तक ही सीमाबद्ध रहता था। कोहेनूरको कीमत पन्द्रह रुपया माल या उसके लगभग थी। पर देशी रियासतोंसे कोई पचास रुपये कीमत ली जाती थी। वह ऐसा जमाना था कि, जब गवनमेण्टसे भी अधिक कीमत ली जाती थी। प्रायः जो कीमत देशी राजाओंसे ली जाती थी, वही सरकार अंग्रेजीसे ली जाती थी। अब वह समय नहीं है। अब सरकार अखबारोंको साधारण दरजेकी कीमत देती है, वह भी उसकी कृपा है। कुछ हो, कोहेनूर अच्छे ढङ्गसे चलता था। उसका ग्राफ भी अच्छा था। कई प्रंस और कितने ही प्रेसमैन और कातिव, कई एक मुंशी और दो दो तीन तीन एडीटर उसमें बराबर रहते थे। कितनी ही बार उसके एडिटरोमें बहुत योग्य और अच्छे पढ़े-लिखे लोग भी होते रहे हैं। उसके हाफमें अधिक मुसलमान होते थे। प्रेसमैन, कातिब उद्देमें मुसलमान ही मिलते हैं। एडिटर भी अधिकतर मुसलमान ही होते थे। मुंशीजी हिन्दू . मुसलमानमें कुछ भेद नहीं समझते थे। वह समय भी ऐसा था कि जब हिन्दू मुसलमानोंमें अच्छा मेल था। कोहेनूरकी पालिसी कुछ नहीं थी। यदि कुछ थी तो यही कि किसीसे छेड़छाड़ न करना। सबसे मिलकर चलना। मुसलमानोंसे [ २५७ ]