पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/२८५

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गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास - - को सामान्य मूल्यसे अधिक नहीं देती, तथापि इसने अड़तालीस ही लिख रखे हैं । राजा लोगोंसे इसका मूल्य ३११/-) (पाई नहीं ! ) अमीरों और महाजनोंसे २१||-) सौ रुपयेकी आमदनीवालोंसे ११||2) और दस बारहकी नौकरीवाले चपरासियोंसे 8-) साल है। फिर कोई अगाऊ मूल्य न दे तो यह मूल्य कोई पौने दूना हो जाता है, मानो यह अखबार अपने खरीदारोंसे मूल्य नहीं लेता, इनकमटैक्स लेता है। अवश्यही इस अखबारके ग्राहक भी होंगे, क्योंकि ग्राहक न होते तो ४५ साल चलता कैसे। ऐसे अखबारोंको हम उर्दू अखबारोंका कुतब कह सकते हैं। यह केवल पचास साल पहलेके स्मारक चिन्ह स्वरूपही नहीं हैं, वरञ्च उस समयको थामे भी बैठे हैं। अखवारे आम "कोहेनूर" और "अवध अखबार" आदिके जारी होनेका समय उर्दू अखबार नवीसीका पहला समय था। लाहोरके "अखबारे आम"ने वह समय पलट दिया। उसके निकलनेसे उर्दू अखबारोंका दूसरा दौर आरम्भ हो गया। वह दूसरे समयका पहला अग्वबार है। उसके निकलनेसे पहले जो अखबार जारी थे, उनका मूल्य बहुत था। कम आमदनीवाले उन्हें खरीद नहीं सकते थे। अग्ववारे आमके जारी करनेवालोंने इस अभावको दूर किया। इस समय उसे जारी हुए ३३ साल पूरे हुआ चाहते हैं। जिस समय अखबारे आम जारी हुआ छोटे अखबारोंका महसूल एक पैसा नहीं हुआ था। तिसपर भी उसने महसूल डाक सहित २||) रखा था। चार छोटे छोटे वरकों पर वह निकलता था । इसके जारी करनेके प्रधान उद्योगी पञ्जाबके शिक्षा विभागके एक सुयोग्य कर्मचारी थे। स्वर्गीय पण्डित मुकुन्दरामजी इसके अधिष्ठाता बने। उन्होंने कोहेनूरकी नौकरीके समय प्रेस चलानेका बहुत कुछ ज्ञान प्राप्त कर लिया था, इससे उनको “अखबारे आम" चालानेमें बड़ी सफलता प्राप्त । २६८ ]