गुप्त-निबन्धावली संवाद-रत्रोंका इतिहास सुनी गयी थी कि अखबारे आमकी किसी खबरसे अगरेजोंको गाली आती थी इसीसे पञ्जाबी सरकार उसपर नाराज हुई। ___ इसके बाद अखबारे आमका समय और पलटा। सरकारी कृपा स्वाधीनतासे लिखने लगा। अब पण्डित मुकुन्दरामजीके समयसे उनके पुत्र पण्डित गोविन्द सहाय और पण्डित गोपीनाथका जमाना आया । पत्र साप्ताहिकसे सप्ताहमें दो बार और फिर तीन बार हुआ। अन्नको दैनिक होकर आकार भी दुना कर लिया। उसकी इज्जत भी बहुत बढ़ी। उर्दूके बहुतसे इधर उधरके अखबार उसकी खबरोंको नकल किये बिना अपना काम नहीं चला सकते थे। इस समय कोहेनर और उसके माथके पुराने अग्यवागेका घटतीका समय आगया था, इससे अग्वबारे आमकी और भी धूम मची। पंजाबमें सबका यही खयाल हो गया कि अखबार आम पहला नम्बर लेगा। पर आज कल लाहोरो अखबारों में एक तीसरा ममय उपस्थित हो चुका है। इससे कौन पहला नम्बर लेगा यह कहना कठिन है। अखबारे आमकी पालिमी स्थिर करना कठिन है। आरम्भमें वह खाली खबरोंका छोटा-सा पत्र था । पीछ भी उसके कोई पालिसी न थी। बीच-बीच में उसके फसली ढङ्गसे कभी-कभी पालिसी दिखाई दे जाती है, पर थोड़े दिन पीछ लोप हो जाती है। कितनी बार उसने सरकारकी बेफायदा खुशामद की है और कितनीही बार ठीक इसके विपरीत व्यर्थ विरोध । कभी-कभी वह हिन्दु समाजका लीडर बननेको भी आगे बढ़ा है, पर कुछ दिन पीछे “सुलहकुल' बनकर उलटे पांवों चलता दिखाई दिया है । कांग्रेसका वह तरफदार भी हुआ है, विरोधी भी हुआ है और बीचों-बीच भी रहा है। यहां तक कि उसके एक नम्बरमें जो राय प्रकाशित होती है, दूसरे नम्बरके लेखसे उसका खण्डन हो जाता [ ... 1
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