उर्दू-अखबार है । यह चाल उसकी बराबर जारी है और उसे इसका जरा ध्यान नहीं। पर अखबार लिखनेवालोंके लिये यह बड़ी दोपकी बात है। अच्छी भाषा लिखनेमें अखबारे आमका कभी नाम न था। यों तो पंजाबके एक अखबारकी भी उर्दू ऐसी नहीं है, जिसे उट्ट के अच्छे विद्वान सही मान सक, तथापि कई एक लाहोरी अखबार अच्छी उद् लिखते हैं। विशपकर आजकल दो एक पत्र वहां भाषामें बहुत कुछ उन्नति कर रहे हैं। पर अखबारे आमकी उर्दू अब भी पुरानीही दशामें है । एक पालिसी और दूसरे भाषा - इन दोकी और उक्त पत्रके चलानेवालोंका पूरा-पूरा ध्यान होना चाहिये । विशेषकर पहली बातका सबसे अधिक ध्यान चाहिये । वही अखबारका प्राण है। ___ इस समय अखबारोंके पढ़नेवालोंका ज्ञान पहलेसे बहुत अधिक हो गया है। वह यह भी जानने लगे हैं, कि कसा अखबार पढ़ना चाहिये । इससे जो सम्पादक समयके परिवर्तनकी ओर भली भांति ध्यान रखते हैं, वही अपने पत्रकी उन्नति कर सकेंगे। कुछ हो, एक बात अखबार आमने ऐमी की है, जिससे उट्ट अग्रवार पढ़नेवाले उसका गुण कभी न भूलंगे । वह यही कि उसने मम्ता कागज निकालकर अखबार पढ़नेकी रुचि बढ़ाई । उर्दू में यह काम पहले पहल उसीके द्वारा हुआ, इस बड़ाईका यह निःसन्देह हकदार है। और कुछ अखबार अखबारे आमके निकलनेके पीछे उद्दू के और भी कई एक अखबार निकले । वह भी बेपालिसीके अखबार थे। उनमेंसे दो एक जीवित भी हैं, पर बुरी दशामें । यदि जरूरत पड़ी तो उनकी बात कहीं आगे कहदी जायगी। अवधपश्च "अवधपञ्च” २७ सालसे लखनऊसे निकलता है। जनवरीसे उसका २८ वा वर्ष आरम्भ होगा। भारतमित्रसे वह एक साल बड़ा है। [ २७१ ।
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