पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/२९९

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गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास स्थानी, अंगरेज सबने उनकी स्तुति की। बड़े लाटने उनकी स्पीचका विरोध करनेपर भी उनकी प्रशंसा की और सी० आई० ई० की उपाधिसे भूषित किया। स्वदेशका वह सदा पक्ष करते हैं। इन सब बातोंसे भारतवासियोंके हृदयमें कितना आनन्द होता है ? पर यह आनन्द कितना निरानन्दसे बदल जाता है, जब लोग यह सुनते हैं कि वह दो बार बड़े लाटके घर जाकर उनके साथ खा चुके हैं। यदि सचमुच ऐसा करनेमें गोखलेके निकट यह कुछ दोष नहीं तो भी बीस करोड़ हिन्दुओंके भावकी रक्षाके लिये उनको ऐसा न करना था। ऐसा करके उन्होंने अपने २० करोड़ स्वदेशियोंसे अपनेको पृथक कर लिया । अब वह लाग्व उन्नति कर जाव, हिन्दुओंके नेता कभी नहीं हो सकते। कोसिलमें कह सुन लेनेके सिवा हिन्दूममाजकी भलाई कुछ नहीं कर सकते । न हिन्दु- ओंके भक्तिभाजन हो सकते हैं। ___ मब अपने अपने धर्मकी इज्जत करते हैं। मर सय्यद अहमदखांने मुसलमान धर्मके विषयमें कितनेही नये खयाल जाहिर किये, पर मस- जिदकी इज्जत उनके कालिजमें वमी ही है। मुसलमान सब एक हैं और समय पर एक दृमरेकी हिमायतको तय्यार हैं । अंगरेजोंमें कितनेही लोग कितनीही तरहका विचार रखते हैं ,पर चर्चकी इजतके समय सब एक हो जाते हैं। दिल्ली, दरबारके समय जब दरबार हो जानेके बाद नमाज हुई तो उसमें बड़े लाटसे लेकर सब छोटे बड़े अंगरेज शामिल थे। कैसा अपूर्व दृश्य था! हमारे राजनीति-विशारद उससे क्या समझे ? क्या वह खाली एक मजहवी रीतिका पूरा करना ही था ? नहीं नहीं, उसमें राजनीति, धर्मनीति सब शामिल थीं। जो लोग समाजमें खड़े हो सकते हैं, वही तलवार लेकर भी साथ खड़े हो सकते हैं और वही सब जगह साथ दे सकते हैं। जो धर्म और समाजमें साथी नहीं, वह राज- नीतिमें साथी होकर क्या कर सकते हैं ?