पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/३०१

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गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास जन्मकालसे देखा है। जन्म समय उसमें होनहारीके कुछ भी लक्षण न थे। उसकी शकल देखकर न किसी प्रकारकी प्रसन्नता होती थी और न यह आशा होती थी कि वह चल भी जावेगा। इस बातका तो स्वप्न भी न था कि जल्द पञ्जाबमें उसका इतना नाम होगा । अखबारे चुनार चुनार मिरजापुरके जिलेमें एक प्रसिद्ध ऐतिहासिक कसबा है । वहांसे कई सालतक एक उर्द का अग्वबार निकलता रहा। उसका नाम था “अखबारे चुनार"। मन १८८७ ई० में उसकी सम्पदकतासे भारत- मित्रक वर्तमान सम्पादकका सम्बन्ध था। उसी साल पैसा अखवारका जन्म हुआ था । चुनारमें हमने पहले पहल पैसा अग्वबारके दर्शन किये । तब वह छोटे-छोटे चार वरकों पर निकलता था। ठीक समय पर नहीं निकलता था। दो-दो तीन-तीन माह बीच-बीचमें गायब हो जाता था। उसके कागज, छापे, लिखाई और लेग्य आदि सबसे उसकी दशाकी दीनताका पता मिलता था। पैसा अखबारके साथ-माथ “बागबान या बेतार" के नामसे एक मासिक पत्र निकाला गया था। और भी कोई एक पत्र था । सब मिलाकर कोई तीन थे। उस समय उक्त तीनों कागज कभी-कभी एक ही पंकटसे निकल पड़ते थे। लोग इसके निकालने वालेकी जल्दबाजी पर हंसते भी थे कि एक कागज अच्छी तरह नहीं निकाल मकते हैं और कई-कई निकालनेके लिये जल्दी करते हैं। एक उर्दू अखवारने उसपर बहुतही भद्दी फबती उड़ाई थी । कहा था “कई सप्राह गायब होकर “पैसा अग्वबार" फिर अपने अण्ड बच्चोंको लेकर आ मौजूद हुआ”। जिस अग्वबारने ऐसा लिग्बा था, अब उसका नाम याद नहीं । खयाल होता है कि शायद वह अखबारही अब नहीं है । संसारमें किसीकी लघुता पर कभी हंमना न चाहिये। न जाने समय किस लघुको गुरु और गुरुको तृणसे भी लघु बना डाले । [ २८४ ]