गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास - दक्षिण हैदराबादसे उसकी अधिक परवरिश होती थी, क्या लेख सम्बन्धो, क्या धर्म सम्बन्धी। तथापि चला नहीं । चलानेवाले और अधिक रुपये उसके चलानेके लिये खर्च न सके । खैर जो कुछ उन सात सालमें होगया, वह भी उर्दू वालोंके लिये एक अच्छा जखीरा है। कहीं इस समय तक उक्त पत्र उसी ढंसे चला जाता तो आज उसकी एक निराली ही शान होती। उक्त मासिक पत्रके बन्द होनेके बाद फिर कोई ऐसा पत्र न निकला। क्योंकि वैसे निकालनेवाले ही और कहां थे ! उस दिमागके आदमी ही तव और न थे। तथापि दक्षिण में दरावादसे कुछ वैसे ढङ्गके पत्र कभी कभी निकलते और बन्द होते रहे। कई एक देखें , नाम याद नहीं । लाहोरसे “गंजेशायगान" नामका एक कानूनी मासिकपत्र कई साल तक निकलता रहा। यह “पञ्जाव रिकार्ड का तरजमा होना था। चीफ- कोर्टको मिसलांका मासिक ग्वुलामा इसमें होता था। कोहेनूर प्रससे निकलता था। वकील लोग खरीदते थे। उसकी देखादेखी एक और वैसाही पत्र लाहोरहीसे कई साल तक निकलता रहा। लाहोरमें एक "अञ्जमने पञ्जाब" थी। अब नहीं है । उससे भी एक मासिकपत्र बहुत दिन तक निकलता रहा। मन १४८६ ई० में पादरी रजबअली साहबने “पञ्जाब रिव्यू" एक मामिकपत्र निकाला । पादरी साहब पुराने आदमी थे। पञ्जाबकी जीती हुई तारीग्य अर्थान पञ्जाबका सजीव इतिहाम लोग आपको कहते थे । क्योंकि पञ्जावकी बहुत पुरानी-पुरानी बात वह जानते थे। उनका यह पञ्जाब रिव्यू अच्छा पत्र होता पर वह केवल चार पांच नम्बर निकलकर बन्द होगया। उन नम्बरोंमें जो कई एक लेख निकले थे, वह अबतक पञ्जाबी पत्रोंमें उलट-पुलट होते हैं। सारांश यह कि देश, समाज, धर्म, नीति, वाणिज्य और विद्या आदि विषयोंपर आलोचना करनेवाले मासिक पत्र तबतक उर्दू में कमही निकले [ २९० ]
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