गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास साहब स्वयं लिखते थे। लेख अधिकतर साहित्य सम्बन्धी होते थे। नाविल उसमें बराबर छपता था। जब मौलवी साहब हैदराबाद चले गये तो उक्त पत्र बन्द हो गया। अब गत जून माससे वह पत्र फिर जारी हुआ है। ___ "दकन रिवियू और अफसाना" हैदराबादसे निकलता है। इसमें अधिक भाग नाविलका होता है। लंग्य कठिन दार्शनिक और भापा और भी कठिन होती है। आकार ६० पृष्ठ और मूल्य ३) वार्पिक है। हैदराबादके दो और मासिक पत्र विशेप वर्णन योग्य हैं। इनके नाम "दबदबये आसिफी" और "मजबुलकलाम" हैं। इनमें पहला गद्यका है, दूसरा पद्यका। स्वयं हैदराबादके निजाम इन पत्रोंके मरपरस्त हैं और उनके प्रधान मंत्री महाराज किशनप्रसादकी आज्ञासे छपते हैं। पहलेमें साहित्य, इतिहास और नीति सम्बन्धी लाव होते हैं। उत्तम लेखके लिये एक अशी इनाम दो जाती है। कवितावाले पत्रमें हुजूर निजाम और महाराज किशनप्रसाद मदामलमूहामकी कविता छपती है । पहले पत्रका दाम ४) और दुसरेका २) माल है। चाहे इन कागजोंका पुराना ढांचा हो और इनकी कविता पुराने ढङ्गकी हो, पर दो साहित्य- सम्बन्धी मासिकपत्र हिन्दुस्थानके एक मबसे बड़े देशी रईस और उसके प्रधान मंत्रीके उत्माहसे निकलते हैं, यह बात बहुत कुछ सन्तोपकी है। दूसरे रईसोंका भी इनपर ध्यान होना चाहिये । ___अलीगढ़से “उदृण्मुअल्ला” नामका एक मासिकपत्र साल भरसे निकलने लगा है। इसके सम्पादक सय्यद फजलुलहसन हसरत बी० ए० हैं। "उण्मुअल्ला" डीलडौलमें "मखजन" और जमानासे कुछ हलका और छपाई सफाईमें बढ़कर है। मूल्य भी इसका उनसे कुछ अधिक अर्थात् ४J साल है। इस पत्रमें कुछ विशेषता है। वह यही कि बहुत शुद्ध उर्दू लिखता है। राजनीतिसे भी यह भागता नहीं [ ३०६ ]
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