हिन्दी-अखबार भाटपन न हो, योंतो बिना कुछ नमक मिर्च लगाए कविता होतीही नहीं। इसमें जिनकी कविता छपैगी एक एक प्रति इस पुस्तककी मिलेगी और जो लोग सहायता पूर्वक कविता भिजवावेंगे वे भी पुस्तक पावेंगे । जो कोई कविता भेजें, वह स्पष्ट अक्षरोंमें भेजें । ३० अकोवरके बाद कोई कविता आवेगी तो वह न छापी जायगी। यदि पत्र वेरिङ्ग भजै तो लिफाफे पर 'राजकुमार सम्बन्धी कविता' इतनो लिग्बदे और कविता बहुत लम्बी चौड़ी भी न हो। कविता चुनने का अधिकार हमने अपने हाथमें रक्खा है। हरिश्चन्द्र काशी पश्चिमोत्तरदेश। इमी विज्ञापनका थोड़ा थोड़ा मतलब बङ्गला-उर्दु आदिमें भी छापा था। इससे उनके लिखनेका ढङ्ग और उनके विचारोंकी भी कुछ कैफि- यत मालूम होती है । इस विज्ञापनके अनुसार बहुतसी कविताएं भारतकी नाना भापाओंमें बनकर हरिश्चन्द्रजीके पास आई। उनमेंसे कितनीही कविवचनसुधामें छपी भी। कविवचनसुधाके प्रधान लेग्व नाना विषयों पर होते थे। जहाजका सफर, युवराजके आगमनमें काशीमें क्या क्या होना चाहिये, शब्दमें प्रेरकशक्ति, नौकरोंको शिक्षा, विग्रहशङ्का, भूकम्प, स्वप्न, समालोचना, मूकप्रश्न इत्यादि कई एक प्रधान लेखोंके शीर्षक हैं। इनमेंसे हरेक लेख एक एक विषय पर है। लेखोंके लिखनेका रङ्ग-ढङ्ग दिखानेके लिये हम राजकुमार प्रिन्स आफ वेल्सके नामके लेखकी अन्तिम पंक्तियां नकल कर देते हैं। “यद्यपि सरकार अपनी निश्चल नीति दिखानेको इनका मान श्रीयुत् वाइसरायसे न्यून समझे, पर हमको इससे कुछ काम नहीं। हमारे धर्म और नीति-अनुसार हमको श्रीमती महारानीके तुल्यही इनका आदर [ ३२३ ]
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