गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास चर्चा उनके समयमें और भी बढ़-चढ़ कर हुई। भारतमित्र अकेला पत्र था और उस समय हिन्दी-लेखक भी गिने-मिने थे। इससे प्रायः उस समयके सब लेखक इस कागजमें लिखते थे। स्वामी दयानन्दजी, बाबू हरिश्चन्द्रजी इसमें लिग्ब चुके हैं। रमाबाई जो इस समय कृन्तानी बन कर पूनामें हिन्द लडकियोंको कृम्तान बनाती है, एक समय इस पत्रमें अपने लेख दिया करती थी। इसी प्रकार बहुतसे बङ्गाली मजन भी इसके तरफदार थे और इसमें लिखा करते थे, राजनीतिकी चर्चा और हिन्दीके प्रचारकी चेष्टा इस पत्रमें बराबर होती रही है। ____ इस पत्रके जनवरी सन १८६० ई०के प्रथम अङ्कमें पहले-पहल प्रिन्स अलवट विक्टरकी तसवीर छपी। तबसे इसमें समय-समयपर तसवीर छपने लगीं। आकार और प्रबन्ध बदलने में भारतमित्र अपने ढंगका एक ही अखबार है। जन्म लेनेके दिनसे इसका प्रबन्ध बराबर जल्द जल्द बदलता रहा। पर अब दस सालसे अधिक हो गये, एक ही प्रबन्धपर दृढ़ है। इसी प्रकार इसके आकार भी खूब बदले। बहुत छोटे-से आकारसे बढ़ते-बढ़ते उसने खूब बड़ा आकार धारण किया । २५ जून सन १८६३ ई०से वह सुपररायल कागजके बड़े-बड़े दो पन्नोंपर छपने लगा। उसी दशामें १६ नवम्बर सन् १८६३ ई०से वर्तमान मालिकके अधिकारमें आ गया। इससे पहले कई एक सज्जनोंकी एक कम्पनीके प्रबन्धसे निकलता था, जिसका नाम “भारतमित्र कम्पनी" था । ७ मई सन १८६६ ई०से इस पत्रका आकार और भी बढ़कर डबल सुपर- रायल हुआ। सन १८६७ ई०के अन्त तक उसी आकारमें छपता रहा । __आकारमें बढ़नेके अतिरिक्त भारतमित्रने दूसरे प्रकारकी उन्नतिकी भी बहुत कुछ चेष्टा की है। सन १८६७ ई०में छोटे साईजपर यह पत्र दैनिक हुआ और साप्ताहिक अपने असली आकारमें अलग छपता रहा। पर प्रबन्ध कुछ अच्छा नहीं किया गया था, इससे दो-चार महीनेके बाद [ ३३८ ]
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