हिन्दी-अखबार दैनिक पत्र बन्द कर देना पड़ा। भला हिन्दी-भाषा और देवनागरी अक्षरोंमें दैनिक पत्रोंके पढ़नेवाले कहाँ ? तो भी हिन्दीके तरफदारोंमें कुछ ऐसे सज्जन हैं, जिनकी आँग्व दैनिक हिन्दी पत्र देखकर बहुत प्रसन्न होती हैं। जो दो-एक बुरे-भले दैनिक हिन्दी पत्र निकलते हैं, उनको देवकर भी वह प्रसन्न होते हैं। यद्यपि "दैनिक भारतमित्र" निरा बच्चोंका-सा खेल था, तथापि वैसे सज्जनोंको उसके बन्द होनेसे दुःख हुआ। उन्होंने फिरसे दैनिक भारतभित्र निकालनेके लिये लिग्वा-पढ़ी आरम्भ की। सन १८६८ ई०से दो शीट रायल आकारके चार पन्नोंपर भारत- मित्र दैनिक हुआ। उसका मूल्य १२) साल हुआ और एक साल तक चलाया गया। उस माल साप्ताहिक पत्र बन्द रहा। दैनिक पत्रोंको जोड़कर ही एक माताहिक बना लिया जाता था। उसी साल मालूम हो गया कि पत्रमें केवल घाटा-ही-घाटा है। इससे दूसरे साल चलाना व्यर्थ समझा गया। हिन्दी में अभी दैनिक पत्र चलनेका समय नहीं है। हिन्दी क्या बङ्गभापामें भी किसी दैनिक पत्रको अभी तक सफलता नहीं हुई। बङ्गालियोंके पांच अंगरेजी अखबार कलकत्तमें दैनिक हैं । उनमेंसे दो बहुत हो अच्छी दशामें चलते हैं। पर बङ्गलाका एक भी अच्छा दैनिक पत्र नहीं है । रूस, जापानको लड़ाईके समयसे “हितवादी" छोटे-छोटे पन्नोंपर दैनिक भी हुआ है । पर वह उसी हैसियतका है, जिस हैसियतका दैनिक भारतमित्र था। हमारी समझमें दैनिक और साप्ता- हिक पत्रमें बड़ा भारी फर्क है। जिस प्रबन्धसे साप्ताहिक पत्र चल सकता है, दैनिकके लिये उससे दस गुना प्रबन्ध दरकार होता है । हिन्दी प्रेसोंमें अभी उतनी शक्ति कहाँ है ? दैनिक पत्र हिन्दीमें उसी दिन चल सकंगे, जब उतना प्रबन्ध होगा। अंगरेजी भाषामें दैनिक पत्र चलना जितना कठिन है, हिन्दी भाषामें उससे और भी अधिक कठिन है, क्योंकि अखबारोंको खबर मिलनेका द्वार अंगरेजी है। अंगरेजीवाले [ ३३९ ]
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