हिन्दी-अखबार चलते भीड़में रुकनेका झन्झट और गाड़ियोंकी फेटमें आकर दब मरनेका भय था। न वहाँ कदम-कदम पर मन लुभावनेवाली या तबीयत बिगाडनेवाली चीज थीं। न रोशनी थी। न कल-कारखाने और चिम- नियोंका दम घोटनेवाला कड़वा धुआं था, न सड़कों पर कूड़-कचरेके ढेर और न गलियाँ बदबूसे सड़ती थां । गजा माहवकी आलमारीके सिवा वहां शराबको कहीं एक बोतल तक न दिग्बाई देती थी। बाजारी स्त्रियों और बदचलन पुरुपोंसे वः भूमि एकदम पाक थी । लम्बी चौड़ी वास- नाओंका निवास उस स्थानमें नहीं। आकाश पातालको एक करनेवाले विचारोंका प्रवेश वहां नहीं होता। बड़ा ही शान्तिमय एकान्त स्थान है। नांधी सादी रोतिसे जीवन बितानेके लिये उससे अच्छा और कोई स्थान नहीं हो सकता। कभी वह गंगाके किनारे-किनारे पण्डित प्रतापनारायण जी और दूसरे सजनोंके साथ धीरे-धीरे टहलना, कभी मालवीयजीके माथ चाँदनीमें रती पर फिरना और कितनीहो तरहकी अच्छी बात करना, स्मरण आता है। कालाकांकर भूलनेकी वस्तु नहीं है। वह छोटासा रम्य स्थान सचमुच स्वर्गका टुकड़ा था। उसमें रहनेका समय भृम्वगमें रहनेके समयकी भांति था। चिन्ता बहुत कम थी, वामनाएँ भी इतनी न थीं, विचार भी सीमावद्ध स्थानमें विचरण करता था । पर हाय ! उस समय उस स्थानका हृदयमें इतना आदर न था। स्वगमें रहकर कोई स्वर्गका आदर ठीक नहीं कर सकता है। कालाकांकरमें रहकर कालाकांकरको ठीक कदर आदमी नहीं कर सकता। आज कल- कत्त में वह सब बात एक-एक करके याद आती हैं। पर क्या वह सब फिर मिल सकती हैं ? जब कुछ मिले तो वह बेफिकरी कहाँ, वह उमर कहाँ ? एक स्वप्न था कि जो जागते जागते देखा !- "अफसानये शबाब खुदारा न पूछिये । देखा है जागतेमें जिसे यह वह खाब था" [ ३५१ ]
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