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गुप्त-निबन्धावली चरित-चर्चा पण्डित अम्बिकादत्तजी मारवाड़ी गौड़ ब्राह्मण थे। जयपुरके पाम मानपुर गांव, इनके बड़ोंका निवासस्थान था। वहीं पण्डित ईश्वररामजी गौड़ ज्योतिषी रहते थे। उनके पुत्र पण्डित राजारामजी काशीमें आकर बसे। वहाँ वह अपने समयके एक नामी ज्योतिषी हुए। उनके पुत्र पण्डित दुर्गादत्तजी दत्त कवि'के नामसे प्रसिद्ध थे। दत्तजी काशी और जयपुर दोनों स्थानोंमें रहते थे। उनके द्वितीय पुत्रका जन्म जयपुर सिलावटोंके मुहल्ले में चैत्र सुदी ८ मंवत १९१५ को हुआ। आपही पण्डित अम्बिकादत्तजी व्याम थे। ___ एक साल पीछे व्यासजीके पिता सकुटुम्ब काशीजीमें चले आये । पांचवं वर्षसे व्यासजीकी शिक्षा आरम्भ हुई। पढ़ने-लिखने में आप बड़े तेज थे। शतरञ्ज, ताश आदि-खलने में भी वैसेही तेज थे । इन खेलांको भी उन्होंने बाल-कालमें खूब मीखा । लिखने-पढ़ने में इतने तेज थे कि १० सालकी उमरमें आपने भाषा कविता बनाने तकका अभ्यास कर लिया था, और उस तरह याद तो कितनी ही चीज करली थीं। ११ मालकी उमरमें व्यासजीने जो ममस्या-पूर्ति की थी, उसे देखकर लोग दंग रह गये थे ! ___ समस्या थी-“जिन तोरहु नेहको काँचो तगा-"इसकी पूर्ति व्यामजीने इस प्रकार की थी :-- मुरली तजिके तलवार गही, अरु जामा गह्यो तजि पीरो झगा। नजि अम्बिकादत्त सबै हमहूँ, अहै साँचहु कौनको कौन सगा । कहियो तुम ऊधव साँवरेसों, इहाँ प्रेमको पन्थ पगा सो पगा। इन जोग-विराग झटकनसों, जनि सोरहु नेहको कांचो तगा ॥ इसी प्रकार और भी समस्या-पूर्तियाँ करके बालक व्यासजी बहुत कुछ प्रशंसा-भाजन हुए। इसी छोटी-सी उमरमें व्यासजीने कथा कहना सीखा और