गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास प्रेसका काम चलाया कि दिनकररावने प्रसन्न होकर संवत् १६०४ में उनको “ग्वालियर गजट” निकालनेकी आज्ञा दी। मुंशी लछमनदास आगरेके रहनेवाले कायस्थ थे। यह तीन भाई थे। बड़े जवाहिरलाल आगरेमें छापेखानेका काम करते थे। दूसरे चुन्नीलाल सरकारी दफ्तर में मुन्तजिम थे। लछमनदास पहले आगरेमें अंगरेजोंको उर्दू पढ़ाया करते थे। वहांसे एक अंगरेजकी सुफारिशने गवालियर पहुंचाया। ___ जब “गवालियर गजट” निकला था, उस समय उसका आकार २०४२६ था । भाषा उर्दू होती थी, जो फारसी अक्षरोंमें छपती थी और वही बराबरके कालमोंमें देवनागरी अक्षरों में भी छप जाती थी। उर्दू के कुछ कठिन शब्द कभी-कभी सरल हिन्दी शब्दोंमें बदल भी दिये जाते थे। उक्त पत्रमें रियासतकी सरकारी और बेसरकारी खबरोंके सिवा उर्दू और हिन्दीके अखबारोंसे खबर नकल होती थीं और कभी-कभी "पाय- नियर" आदि अंगरेजी अखबारोंसे भी दो चार खबर ले ली जाती थीं। स्वाधीनता इस पत्रकी भी वैसीही थी जैसी दूसरे रियासती अखबारोंकी। इससे हिन्दुस्थानमें इस पत्रकी कभी इज्जत नहीं हुई। रियासतहीमें यह बिकता रहा। खबर उसकी बहुत पुरानी और खूसट होती थीं। अच्छे लेखोंका सदा अभाव ही दिखाई दिया । यदि अच्छे लेख कभी निकले भी हों, तो हमारी दृष्टि तक नहीं पहुंचे। जुलाई सन् १८६६ ई० में "गवालियर गजट' उर्दूमें अलग और हिन्दीमें अलग छपने लगा। किन्तु हिन्दीवालेकी भाषा फिर भी उर्दू ही रही। कुछ दिन एक अंगरेजी पर्चा भी गजटके साथ निकलने लगा था, जो शायद दस बारह नम्बर तक निकलकर बन्द हो गया। कुछ दिन पहले तक उर्दू और हिन्दीमें अलग अलग, उक्त गजट बराबर निकलता था। कोई दो साल हुए जबसे रियासतमें फारसी अक्षर बन्द होकर नागरी जारी हुए तबसे उर्दूका गवालियर गजट बन्द हो गया। [ ६८० ]
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