गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास पण्डित उमाचरण प्रेसके सुपरिण्टेण्डेण्ट हुए, उस समय मुंशी कामताप्रसाद गजटके सम्पादक हुए। सन् १६०४ ईस्वी में पण्डित उमाचरणको बदली हो गई। तबसे बाबू कृपाशङ्कर प्रेसके सुपरिण्टेण्डेण्ट हैं। इनके समयमें गजटका सम्पादन उमानाथ बागची नामके एक बंगाली महाशय द्वारा हुआ। एक साल पीछे बाबू श्रीलालको उक्त पद दिया गया। वही इस समय सम्पादकके पदपर आरूढ़ हैं। गवालियारगजटकी हिन्दीका एक नमूना नीचे देते हैं । यह ३ जन- वरी सन् १६०४ ई० की संख्यासे दिया जाता है। उस समय हिन्दीका गजट बिलकुल अलग निकलता था। _ "इस दुनियामें बड़े-बड़े मुवरिख और इनशाप्रदाज लोग ही गुजरे हैं जिनके कलमने अजीबोगरीब खयालातकी एक नई दुनिया रच दी। या यों कहो कि जमीन आसमानके कुलाबे मिला दिये। लेकिन दुनियामें हमेशा इस कदर नौ ब नौ और ताजा ब ताजा वाकआत होते रहे हैं कि वह लोग उनको नातमाम छोड़कर चल बसे। और बावजूद इसके कि दुनियाको पैदा हुए करोड़ा बल्कि अरबां बरस गुजरे, उसके वाक- आत हमेशा नये होते हैं जिनके लिये लुगात और डिक्सनरीमें अलफाज भी नये नहीं मिल सकते। इन वाकआतके सामने आदमीकी उमर बिलकुल कोताह है बल्कि उसका खातमा भी दुनियाके वाकआतसे एक वाकआत है जो मामूलातमें दाखिल हो रहा है । यह वाकआत जिन्दगीको ऐसे चिमटे हुए हैं जैसा मलयागिर पर्वत पर चन्दनके दरख्तको सांप चिमटे हुए होते हैं।” यह हिन्दी, हिन्दी नहीं उर्दू है और वह भी पुराने जमानेकी, कमसे कम तीस चालीस साल पहलेके जमानेकी। विचार वैसे ही हैं और ढंग भी वैसाही। पर "जयाजीप्रताप” की हिन्दीमें बहुत कुछ परिवर्तन दिखाई देता है । यद्यपि उसमें नकल के सिवा असल अर्थात् सम्पादककी [१२]
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