पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/४०

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साहित्याचार्य 40 अम्बिकादत्त व्यास भी आदमी नहीं दिखाई देता ! केवल ४२ वर्ष और कई मासकी उमर व्यासजीने पाई। इस थोड़ेहीसे कालमें उन्होंने साहित्यकी बहुत कुछ सेवा करडाली। वह एक मासिक-पत्र भी निकालते थे, जिसका नाम “पीयूष-प्रवाह" था। "वैष्णव-पत्रिका के नामसे और भी एक मासिक-पत्रिका उन्होंने निकाली थी। पर यह दोनों पत्र बहुत दिन नहीं चलने पाये, तथापि व्यासजीकी रचनाका जखीरा बहुत भारी है। वह संवत् १६२५ अर्थात १० वर्षकी उमरसे लिग्वने लगे थे। उन्होंने “प्रस्तार दीपक” नामकी पुस्तक मबसे पहिले बनाई । तबसे संवत १९५४ नक ७८ पुस्तक बनाई । इसके पीछे और भी किताब इनकी छपकर निकली हैं। इन किताबोंमें नाटक, काव्य, साहित्य, इतिहास, दर्शन, दिल्लगी, धर्म आदि सब प्रकारकी रचनाएं हैं। उनको बनाई “मूर्तिपूजा” और “बिहारी विहार"का बड़ा भारी आदर हुआ। दो वर्ष नहीं हुए, व्यासजी फिर कलकत्त आये थे । श्रीबलदेवजीके मन्दिर में उनके व्याख्यान हुए थे। इसके बाद आप बीमार हुए। बीमार पहिले भी हुए थे। दो बार मग्नेकी खबर भी उड़ चुकी थी। परन्तु इस बारकी लम्बी बीमारी राजयक्ष्मा रूपसे उनके प्राणही लेने आई थी। उसने धीरे धीरे उनके कोमल प्राणोंको खंचना आरम्भ किया। अन्तमें अतिसारक झोकोंने उनके जीवन-दीपकको एकबारही बुझा दिया। गत पूर्व सोमवार ( ता. १६-११-१६०० ई०) को रातके तीन बजे उनका जोवन शेष हुआ। क्या लिव, उनकी किस किस चोजकी आलोचना करें, चित्त व्याकुल है। आखोंसे आंसू बहे चले आते हैं। पण्डितवर सुधाकरजी द्विवेदीने ठीक लिग्वा है कि उनके मरनेका आज विद्वान मात्रको शोक है। व्यासजी केवल एक पुत्र और एक पुत्री छोड़ गये हैं। पुत्रकी अवस्था केवल १० वर्ष है। -भारतमित्र १९.. ई.