गुप्त-निबन्धावली संवाद-पत्रोंका इतिहास भी हिन्दीको वह बहुत कुछ लाभ पहुंचा सकेगे। अब समय है कि सब सज्जन मिलकर हिन्दीको खूब कामकी चीज बना डालें। इसीसे इस देशका भला होगा। ___ गवालियर गजटका वर्तमान आकार गजट आफ इण्डियाकासा है। पर उसमें पृष्ठ बीसके नीचे ही होते हैं। खूबसूरतीमें भी वह अंगरेजी गजटके तुल्य नहीं होता । हम रियासत और गजट दोनोंकी उन्नति चाहते हैं। एक दिन ऐसा हो सकता है कि सब देशी रियासतोंसे उनके अलग अलग सरकारी गजट हिन्दीभाषामें निकले और स्वाधीन समाचार- पत्रोंका उनमें आदर हो। प्रेसको वहां स्वाधीनता मिले। गवालियर गजटके टाइटल पर उक्त रियासतका राजचिह्न (कुंडली- धारी सर्पराजकी मूर्ति) होता है। यह चिह्न नये पत्र जयाजीप्रतापके मस्तक पर भी होता है। गवालियर राज्यके टिकट आदि सब पर यह चिह्न होता है। रियासती अखबार जयपुर गजट स्वर्गीय महाराज रामसिंह बहादुरका शासनकाल जयपुरमें राम- राज्य कहला गया। महाराज सवाई जयसिंहने जयपुर नगर बसाकर जो कीर्तिलाभ की थी, उससे कई गुनी कीर्ति महाराज रामसिंहजीने अपने सुशासनके कारण प्राप्त की। जयपुर राज्यमें उन्होंने जो जो उन्नतिके काम किये उनमेंसे एक काम रियासती प्रेस कायम होना और उससे एक अर्द्धसाप्ताहिक समाचार पत्र निकलना भी है। जयपुर गजटकी नींव उनके शासनकालमें सन् १८७८ ई०में पड़ी। ___ आरम्भमें इसके सम्पादक बाबू महेन्द्रनाथ सेन हुए। यह जयपुर कौंसिलके मेम्बर थे। उस समय उक्त पत्र अंगरेजी और हिन्दी था। जयपुर कौंसिलके सेक्रेटरी और मेम्बर ठाकुर नन्दकिशोरसिंह प्रधान [ ३८४ ]
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