गुप्त-निबन्धावली
संवाद-पत्रोंका इतिहास
अपनी बात
गत २६ सालका चिठ्ठा
भगवान कृष्णदेवकी कृपासे भारतमित्रने अपनी आयुके २६ साल पूरे
करके २७ वें सालमें पांव रखा। हिन्दीके चलते पत्रोंमें यह बहुत पुराना
पत्र है। इसकी इस २६ सालकी जीवनी पर जरा ध्यान देनेसे बहुतसी
कामकी बात मालूम हो सकती हैं। इससे आज भारतमित्रकी आत्म-
कहानी सुनाई जाती है। इन वर्षों में उसकी गति स्थिति और उन्नतिकी
कैसी दशा रही तथा हिन्दी भाषाका तबसे क्या फेरफार हुआ यही दो
एक विषय इस लेखमें दिखाना चाहते हैं ।
जन्म समय
__ ज्येष्ठ कृष्ण प्रतिपदा संवत १९३५ को भारतमित्रका जन्म हुआ। उस
दिन अंगरेजी तारीख १७ मई सन् १८७८ ई० था। इसकी पहली
संख्या आधे रायल शीट दो पन्नों पर छपी थी! इसके मस्तक पर
इसके नामके नीचे इसका मोटिव या उद्देश्य यह लिखा गया था-
जयोऽस्तु सत्यनिष्ठानां येषां सर्वे मनोरथाः।
इसका मूल्य प्रति संख्या दो पैसे रखा गया था। इसके चौथे पृष्ठके
अन्तमें एक निवेदन छपा था जिसकी ठीक नकल नीचे की जाती है-
निवेदन
विदित हो कि यह पत्र प्रतिपक्षमें एक बार प्रकाशित होगा, परन्तु
बिना सर्ब साधारण की सहायताके इस्के चिरस्थाई होने कि आशा
निराशा मात्र है इस लिये सर्बसाधारणको उचित है कि इसकी सहायता
कर और यदि यह पत्र ईश्वरकी इच्छासे समाजमें प्रचलित हुआ तो
और इस्के ५ सौ ग्राहक हुए तो शीघही साप्ताहिक होके प्रचारित होगा।
कलकत्ता
छोटूलाल मिश्र
बड़ाबाजार
सूतापट्टी ) दुर्गाप्रसाद मिश्र
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पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/४१३
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