हिन्दी-अखबार हिन्दुओंपर अपनी नासमझीसे बहुत कुछ अत्याचार किया था, जिसकी विशेष बातें कालाकांकरके “हिन्दोस्थान"ने प्रकाशित की थीं। ब्राडला साहबने यह बात पालीमेण्ट तक पहुंचाई थी, पर दुःखकी बात है कि इसपर आन्दोलन करनेसे पहले ही उनका देहान्त हो गया। उस साल एण्टी कांग्रसकी भी बहुत कुछ चर्चा थी, जो अमृतसरमें सैयद अहमद खांने कांग्रसका विरोध करनेके लिये चलाई थी और अब वही मुसलमानोंकी शिक्षा सम्बन्धी कानफरस बन गई है। सितम्बरकी संख्याओंमें अमृतसरके पुलिस सुपरिण्टेण्डेण्ट वारबर्टन साहबके लाहोरके “ट्रिब्यून” पत्रपर मानहानिकी नालिश करनेकी बात है। अमृतसरकी पुलिसने एक ऐसा गुप्त कानून बना रखा था, जिससे लोगोंपर बहुत तरहके अन्याय होते थे। उसीके अनुसार उसने एक दिन एक लड़कीको मंगाकर उसके शरीरके चिह्न देखे थे। इन सब बातोंको दिखाते-दिखाते ट्रिब्यूनने कुछ ऐसी बात लिखी थीं, जिनसे बारबर्टन साहबकी मानहानि हो गई। ट्रिब्यूनको इस मामलेसे जुरमाने को सजा अवश्य हुई, पर बारवर्टन साहबको भी अमृतसरसे निकल जाना पड़ा था। इस मुकदमेकी बातं भारतमित्रमें विस्तारपूर्वक लिखी गई हैं। ___ सन् १८६१ ईस्वीके आरम्भमें "सहवास-सम्मति” बिलपर बहुत जोर का आन्दोलन हो रहा था। उसमें भारतमित्र भी शरीक था। जनवरी- में वर्तमान रूस-नरेश राजकुमारावस्थामें भारत-भ्रमणको आये थे। उनके विषयमें भी सचित्र लेख लिखे गये थे। सिरसाके बाबू काशीनाथ खत्री हिन्दीके एक प्रसिद्ध लेखक थे। फरवरीके भारतमित्रमें उनकी मृत्युका संवाद और चित्र छापा गया है । अप्रैल और मईके “भारतमित्र" में मनीपुरके बखेड़े और काशीके राममन्दिरके मामलेपर लगातार लेख हैं। जूनके अङ्कोंमें वही चर्चा है। [ ४१५ ]
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