सामग्री पर जाएँ

पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/४३८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

हिन्दी-अखबार द्रदत्तजीके समयमें दूसरा समय हुआ। तब हिन्दीने अच्छी उन्नति र ली थी। अब तीसरा समय है। तीसरे समयके लोग हिन्दीकी वा कर रहे हैं। यह भी अपने पूर्वके सज्जनोंकी भांति इसकी उन्नतिकी प्टा करते हैं। समय अनुकूल रहेगा तो उन्नति भी अच्छी होगी। __यह इस पत्रकी पुरानी २६ सालकी कहानी है। आशा है कि पाठक पने पुराने पत्रका सदा आदर करंगे और भगवानसे इसके उन्नत ने और सैकड़ों वर्ष जीनेकी प्रार्थना करेंगे। गत संख्यामें भारतमित्रके पिछले २६ सालकी कहानी सुनाई गई । बहुतसे पाठकोंने उसे पसन्द किया है। किसी-किसीने तो यहां क कहा है कि वह पुस्तककार छपना चाहिये। वास्तवमें वह अपनी ही, हिन्दीभाषाकी गत चौथाई सदीकी कहानी है। बात और भी हुत रह गई। एक संख्यामें और कहां तक कह सकते। फिर तनीही बातें ऐसी हैं, जो पीछे मालूम हुई हैं। कितनीही ऐसी भी हैं निका कोई बतानेवाला नहीं, तथापि दो एक भूली-भटकी बातें और ह डालते हैं। कलकत्तके बडेबाजार में एक बंगाली सज्जन बाबू नित्यगोपाल मल्लिक इते हैं । आरम्भमें कई साल इसी बङ्गाली रईसके उत्साहसे “भारतमित्र" ला है। उनका इस पत्रसे कुछ भी स्वार्थ न था, तथापि अपने हिन्दु- रानी मित्रोंके अनुरोधसे कई साल वही इसका सब प्रबन्ध करते रहे । भारतमित्र” की पुरानी कमिटीके एक मेम्बर बाबू मनोहरदास खन्ना । उन्होंने भी कई साल तक इसके लिये बड़ा परिश्रम किया। वह सके बड़े प्रेमी थे। आरम्भमें डाक्टर एस० के० वर्मन भी इसमें प्रखते थे। और अच्छा लिखते थे। आपके लेख बड़े मजाकदार होते । बाबू जगन्नाथ दासने जबसे इसे लिया तबसे वह भी इसमें लिखते । पंचाना नोक-झोंक उनकी खूब होती थी। [ ४२१ ]