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पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/४५

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गुप्त-निबन्धावली चरित-चर्चा % मरल, सीधे और मस्त आदमी थे । बड़े दिल्लगीबाज थे । विशेषकर हँसने हसाने और कवितामें दिल्लगी करनेका आदत उनकी बहुतही बढ़ी-चढ़ी थी। किसी किसी दिन कविताहीमें बात करते थे, एक शब्द भी गद्य नहीं बोलते थे। मम्त ऐसे थे कि कभी कभी चुपचाप जंगलको निकल जाते थे और कई दिन तक गायब रहते थ । साल होगये, जब हम हिन्दी-बङ्गवासीक लिये कलकत्तमें आये नो कानपुरमें पण्डित प्रतापनारायणजीने कहा था, कि हमारा प्रभुदयाल भी वहाँ है ; उसका ध्यान रखना। हाय ! आज स्वर्गीय प्रतापका वही प्यारा प्रभुदयालु छिन गया। कुछ काल भी संसार में अपनी प्रतिभा न दिग्वाने पाया ! गुरुकी जीवनी लिम्वनेसे पहलेही उनका अनुगामी हुआ ! प्रभुदयालुकी धम्मपरायणना अनुकरणक योग्य थी। सदा गङ्गास्नान और शिवपूजन करते थे । रुद्राक्ष गलेसे कभी नहीं हटा । मरते दम तक होशियार थे । प्राण त्यागनेक लिये म्वयं चारपाईस उतर पड़े। रोती हुई माता और पत्नीको छोड़कर शिवलोकको चले गये। घरमें चार विधवा त्रियाँ छोड़ी हैं और एक साल भरका बालक । भगवानके सिवा इन विधवाओं और बालकका काई पालनकर्ता नहीं। अपने मित्र, अपने महयोगीक अममयक वियोगस आज हमारी कातरताका पार नहीं है। -भारतमित्र, १९०३ ई० बाबू रामदीनसिंह तलसीदासजीने भगवान रामचन्द्रजीकी एक पदमें महिमा वर्णन की है, उसका आरम्भ इस प्रकार है : “एसे रामदीन हितकारी". -- स्वर्गीय पण्डित प्रतापनारायण मिश्रने बाबू रामदीनसिंहजीके गुणों