पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/४६

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बाबु रामदीनसिह पर मोहित होकर कहा था-'ऐसे रामदीन हितकारी'। इसके दो अर्थ हुए, एक यह कि रामने हमको एक हितकारी दिया और दृसरा यह कि गमदीनजी हितकारी हैं। यह हित किम चीजका ? हिन्दीके परम रमिक दूसरे हरिश्चन्द्र पण्डित प्रतापनारायण मिश्रके हृदयमें बाबू रामदीनसिंहके किस हितने जगह की ? वह और कोई चीज नहीं, केवल बाबू रामदीनसिंहकी हिन्दी-हितैषिना थी। हरिश्चन्द्रको प्रतापनारायण गुरु-तुल्य मानते थे। उन हरिश्चन्द्रकी ग्रन्थावलीक छापनेमें बाबू गमदीनसिंहका इतना अनुराग देखकर प्रतापनारायण गा उठे थे"ऐसे रामदीन हितकारी । ___ बाबू रामदीनसिंहका जन्मस्थान युक्तप्रदेशके बलिया जिलेके रेपुरा तालुकेमें है। उन्होंने पौष शुक्ला १४ रविवार संवत् १९१२ को उक्त म्थानमें जन्म-ग्रहण किया था। राशिका नाम कोमलसिंह था। वह हयहय वंशीय क्षत्रिय थे। पिताका नाम अमरसिंह और पितामहका नाम दिगम्बरसिंह था । रेपुरासे १०.-१३ वर्ष की उमरमें वाबू गमदीनसिंह पटना आये और पांच छः साल तक हिन्दी और संस्कृत पढ़ते रहे। आरम्भमें उन्होंने एकाध छोटी मोटी नौकरी भी की । सन १८७७ या ७८ के लगभग वह हिन्दी लिग्वने लगे थे। इसके कुछ दिन पीछे "क्षत्रिय-पत्रिका" निकालनेका उद्योग करने लगे थे। उन्हीं दिनोंमें "क्षेत्र तत्व" और "गणितबत्तीसी" आदि पुस्तकं लिखी थीं । मन १८८१ ई०में उन्होंने अपने माननीय मित्र हिन्दीके प्रेमी स्वर्गीय लाल खड्गबहादुर मल्लके नामपर खड्गविलास प्रेस खोला । उमी सालके मई माससे उनकी "क्षत्रिय-पत्रिका" निकलनी आरम्भ हुई । उस दिन संवत् १६३८ के जेठ मासका दशहरा था। तीन चार साल तक "क्षत्रिय पत्रिका' लगातार चली, फिर कुछ दिन बन्द रहकर फिर चली। हालमें फिर उसका दर्शन हुआ था, पर चल न सकी । . [ २९ ।