पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/४६८

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भाषाकी अनस्थिरता अड्डा जमाना चाहता है ? बस, यही आपकी व्याकरणदानी है ? ) उनसे इस कारण ( किस कारण ? जरा अपनी व्याकरणदानीमें कारण तो तलाश कीजिये ? आपके तो एक ही वाक्यके छेड़ने में आफत हो जाती है । ) हम शतबारक्षमा प्रार्थना करते हैं । (व्याकरणसे आपने अपना कसूर तो बताया नहीं, क्षमा शतबार नहीं सहस्र बार मांगिये, यह आपका सौजन्य है ! ) -चाहे ( हैं हैं ! )वे इस समय इस लोकमें हो चाहे परलोकमें। इसमें बुरा माननेको बात नहीं है। (बेशक बुरा माननेकी बात नहीं है, विशेषकर उन लोगोंको तो कभी आपकी बातका बुरा न मानना चाहिये, जो पर- लोकमें है। यहांवालोंसे अधिक अनुरोध नहीं किया जा सकता।) हम स्वयं भी बहुधा व्याकरणविरुद्ध लिख जाते हैं। ( आपकी सचाईमें संदेह नहीं। आत्मारामको समझमें तो आप एकदम व्याकरण विरुद्धही लिखते हैं। बेचारा बताता बताता तङ्ग आ गया। ) इसका कारण यह है कि व्याकरणकी तरफ लोगोंका ध्यान ही कम है। (वाह साहब ! व्याकरण- विरुद्ध तो बहुधा आप लिख और उसकी तरफ ध्यान रख लोग ! उन्हें ध्यान रखाईका क्या मिलेगा ? अच्छा आत्माराम ध्यान रखेगा, मेह- नताना तय कर लीजिये।) और एककी देखादेखी दुसरा भी उसकी कम परवा करता है।" अब आगामी बार द्विवेदीजीके उदाहरण सुनानेको आत्माराम हाजिर होगा। दो सप्ताह हो गये इससे आशा होती है कि अगली हाजिरीतक द्विवेदोजी "अनस्थिरता” को व्याकरणसे सिद्ध कर डालेंगे। दो सप्ताहमें उन्होंने व्याकरण भली भांति उलट-पलट लिया होगा। द्विवेदीजी आंधीकी भांति उठते हैं, किन्तु धूलकी भांति गिरते हैं। आपकी लम्बी चौड़ी कू का और हू-हुल्लड़ देखकर तो यही प्रतीत होने [ ४५१ ]