पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/४८

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बाबू रामदीनसिंह मान भी बहुत रखते थे। इतनेपर भी उनका म्वभाव बड़ाही नम्र था। मुखमण्डल सदा प्रसन्न रहता था। सबसे हँसकर बात करते थे। बड़े ब्राह्मण भक्त थ, हिन्दीके लेग्यकोंकी कुछ कुछ महायता भी करते थे। उनकी सदा यही इच्छा रहती थी कि, उनका प्रेस हिन्दीक काममें सबसे बढ़ जाय । पुस्तकक ऐसे प्रेमी थे कि शरीरकी धूल न झाड़त थे और पुस्तकोंकी धूल झाड़ते थे । हरिश्चन्द्र-कलाके सिवा उन्होंने कई-एक पुस्तक बड़े कामकी छापी, उनमेंसे एक तुलसीकृत गमायण है, जिसको शुद्धतापूर्वक बहुत ऊंचे ढंगपर छापा है। रामायणमें क्षेपक मिला मिलाक छापनेवालोंने उसे एक रद्दी पुस्तक बना दिया है। खड़गविलास प्रसने उसे शुद्ध करके मानो रत्नोंको कंकड़ोंसे अलग कर लिया है। इसकी बात फिर कभी कहेंगे। कई एक और भी अच्छी पुस्तक छापनेका इनका इरादा था। (१) टाड राजस्थानका हिन्दी अनुवाद, (२) राजतरिङ्गिणीका सटिप्पण अनुवाद, (३) भाषाके कवियोंका बड़ा जीवन चरित्र (४) स्वर्गीय वाबू हरिश्चन्द्र और पण्डित प्रतापनारायण मिश्रकी सचित्र जीवनी (५) एक अच्छा भापा कोप । हम आशा करते हैं, कि वाव साहबके उत्तराधिकारी लोग उनके इन प्यारे कामोंको पूरा करेंगे। ___ उनका बहुत लोगोंसे मेल मिलाप था, पर इन दो सज्जनोंसे बहुतही अधिक प्रीति थी-म्वर्गीय उदयपुर-नरेश महाराना सज्जनसिंह और डाकर ग्रियर्सन । वह सदा इनका नाम लिया करते थे। बाबू रामदीनसिंहकी अवस्था केवल ४८ वर्ष थी। वह अपनी कमाईसे हजारोंकी जायदाद छोड़ गये हैं। वह बहुतसी जमींदागे खरीद कर गये हैं। उनका हजारों रुपयेकी मालियतका छापाखाना है, उसकी एक बहुत अच्छी इमारत है । बाबू साहबके तीन पुत्र हैं, जिनमेंसे बड़े रामरणविजयसिंहकी उमर १८ सालकी है। . [ ३१ ]