हिन्दीमें मालोचना पर जो दोष है, क्या कोई उसे दोष न कहेगा ? यदि आंग्ल भाषाके विद्वत् चूड़ामणि होनेसे ही सब दोष दूर हो जाते हैं, तो सरस्वतीके वर्तमान सम्पादक द्विवेदीजीने लाला सीतारामपर क्यों किताबें लिख डाली हैं ? लाला सीताराम ही क्या, संस्कृतके बड़े-बड़े गड़े हुए पण्डितों की कबरे खोदकर वह उनकी दाढ़ी-मूंछे क्यों नापते हैं ? ___x x x x और कृपा करके इतना आप बताइये कि 'विमल बी० ए०' पासका क्या अर्थ ? सरस्वतीकी उसी संख्यामें लिखा है- __ मातृ भाषाके प्रचारक विमल बी० ए० पास। 'विमल बी० ए० पास' कौनसी परीक्षाका नाम है " १६०३ के फरवरी और मार्च मासकी 'सरस्वती' एक साथ निकली थी। उक्त संख्यामें एक चित्र है, जिसका शीर्षक है-“साहित्य समा- लोचना।” उसमें एक साहित्य सभा बनाई गई है। उसमें कुर्सियां लगाई गई हैं। पहली-दूसरी इतिहास और जीवन-चरितकी कुर्सियां खाली हैं। तीसरी कुर्सी पर्यटनकी है। इसपर एक गोल टोपीवाले बाबू बिठाये गये हैं, जो अचकन-सदरी पहने हुए हैं। उन्हीं दिनों एक सज्जन अपना पर्यटन बहुत लम्बा चौड़ा लिख चुके थे, उनकी तसवीर भी उनकी पोथीमें छपी थी। साहित्य सभाकी तीसरी कुर्सीपर जो बाबू बिठाये गये हैं, उनकी तसवीर उस पर्यटन लिखनेवालेकी तसवीरसे बहुत मिलती है। मालूम होता है कि तीसरी कुर्सीपर उन्हींको जलील करनेके लिये बिठाया है। पांचवीं कुसी उपन्यासकी है, उसपर एक लम्बी दाढ़ी और बड़े पेटका बाजीगर हाथमें डुगडुगी और लकड़ी लिये और अपने बकरे और बन्दरकी रस्सी थामे दण्डायमान है। छठी कुसीपर एक विरहा गानेवाले गंवारकी तसवीर है। यह मूर्ति व्याकरणवालोंकी बनाई गई है। सातवीं कुसी काव्यकी है, उसपर एक लखनौआ, शौकीन लाला, [ ५२७ ]
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