पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/५६१

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गुप्त-निबन्धावली मालोचना-प्रत्यालोचना अपने राजस्थानको न बनाते। कर्नल टाड साहब राजस्थानमें रहे थे। राजपूतोंके निकट रहनेसे वह राजपूत जातिका चरित्र समझे थे, राज- पूतोंकी वीरताका प्रभाव उनपर पड़ा था। मेवाड़ राज्यके राणाओंकी वीरताके चिन्ह देख-देखकर उस वीर जाति-सम्भूत वीर पुरुषका हृदय जोश मारने लगा था, इसीसे उस वीर जातिका कीर्ति-स्वरूप 'राजस्थान' ग्रन्थ उन्होंने बनाया और उसमें मेवाड़ देशका विशेष रूपसे अलग खण्डमें वर्णन किया। क्योंकि मेवाड़की गुणावली टाडके हृदयपर छाई हुई थी। पर हिन्दुस्तानमें एक कहावत है-'मर्दकी गर्दमें रहना अच्छा, नामर्दको सरहदमें रहना अच्छा नहीं'-जो पुस्तक टाडने राजपूतों-मेवाड़ और मेवाड़के महाराणाओंकी उज्ज्वल कीर्ति-प्रकाश करनेके लिये बनाई थी, उसीने बङ्गदेशमें पहुँचकर उक्त कीर्तिमानोंकी कीर्तिका मुंह काला किया। बङ्गसाहित्य पर कलङ्क 'अश्रुमती' नाटकके लिखे जानेसे बङ्गभाषाके साहित्यका मुंह काला हो गया है। इस पुस्तका नाम-'अश्रुमती नाटक' रखा है। किन्तु इसके टाइटल पेज पर मोटो स्वरूप टाड साहबके 'राजस्थान से एक वचन उद्धृत किया है, उसे हम भी नीचे लिख देते हैं - "There is not a pass in the alpine Aravalli that is not sanctified by some deed of Pratap, sonue brilli- ant victory, or oftener, more glorious defeat. Haldi- ghat is the Thermopylae of Mewar, the field of Deweir her Marathon." -Tod's Rajasthan. इसका भावार्थ यह है-“अरावली पर्वतमें एक भी ऐसी घाटी नहीं है जो महाराणा प्रतापके किसी कामसे पवित्र न हुई हो-चाहे कोई चमकती हुई फतह अथवा कोई उनके चरित्रको खूब उज्वल करनेवाली हार । हल्दीघाट मेवाड़का थरमोपोली है और देवेर वहाँका माराथोन।" [ ५४४ ]