पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/५६३

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गुप्त-निबन्धावली आलोचना-प्रत्यालोचना गई। यह बात उसने अपने चाचा शक्तिसिंहसे भी कह दी। सलीम भो अश्रुमती पर मोहित हुआ। पीछे क्षत्रिय-कुल गौरव पृथ्वीराजका भी अश्रुमती पर प्रेम हुआ। सलीमने पृथ्वीराजको मार डाला और अश्रुमतीको घायल किया। अश्रमतीका चाचा उसे घायल अवस्थामें उसके पिताके पास ले गया। वहां उसने पिताके सामने भी सलीमके प्रेमकी हां की। मृत्युशय्यापर पड़े हुए पिता प्रतापको इसके सुननेसे मानो मरनेसे पहले ही मर जाना पड़ा। अन्तमें उसने उस कलंकिनी अश्रमतीको भैरवी बननेका हुक्म दिया। वह महादेवकी पूजा करती हुई श्मशानमें रहने लगी। वहां श्मशानमें भी उसे सलीम मिला और अन्तमें वह गायब होगई। यही 'अश्रुमती नाटक' का सार है। ___ हम बङ्गदेशके पढ़े-लिखे लोगोंसे पूछते हैं कि इस पुस्तकको पढ़कर बंगदेशकी लड़कियोंको क्या शिक्षा मिलगी ? और आप सब बंगाली लोग न्यायसे कहें कि आपहीको उससे क्या उपदेश मिला ? इस पुस्तकके पढ़नेसे आपकी गर्दन नीची होती है या ऊंची ? बंग-साहित्यके मुंह पर इससे स्याही फिरतो है या नहीं ? आपके बंग-साहित्यमें यदि ऐसी पुस्तक बढ़ तो उस साहित्यका मुंह काला होगा कि नहीं ? जिस पुस्तकका नाम कुछ और मोटो कुछ और है तथा मोटो कुछ और उद्देश्य कुछ और है, वह साहित्यमें घोर कलंककी वस्तु है या नहीं ? हिन्दुओं पर कलङ्क किन्तु साहित्य जहन्नुममें जाय,हमको साहित्यसे कुछ मतलब नहीं है। हमको जो कुछ मतलब है इस पुस्तकसे है, वह हिन्दू-धर्म लेकर, राज- पूतोंका गौरव लेकर और हिन्दूपति महाराणा प्रतापसिंहकी उज्ज्वल कीर्ति लेकर है। इस 'अश्रुमती' में चाहे जाने हो, चाहे बेजाने, हिन्दुधर्म पर बड़ा भारी आक्रमण किया गया है, राजपूत कुलमें कलंक लगाया गया है। विशेषकर मेवाड़की सब कीर्ति धूलमें मिलानेकी चेष्टा की गई है। [ ५४६ ]