अश्रुमती नाटक
बंगाली चाहे जाने, चाहे न जाने, किन्तु हिन्दू लोग महाराणा प्रतापकी
बड़ी इज्जत करते हैं, सबेरे उठकर उनका नाम लेते हैं, उनका उज्ज्वल
यश आजतक गाया जाता है । उसे सुन-सुन कर इस गिरी दशामें भी
हिन्दुओंका हृदय स्फोत हो जाता है। कारण यह है कि जयपुर-जोधपुर
आदिके नरेशोंने बादशाहको डोले दे दिये । इससे हिन्दृ-समाजमें बड़ी
हलचल पड़ी। हिन्दू-समाजने अपनेको बड़ा अपमानित और लाञ्छित
समझा था । सब राजा लोग अकबरके दबावमें आ गये थे। ऐसे कठिन
समयमें प्रतापका निर्भीक होकर मुसलमानोंसे घृणा करना और क्षत्रिय
कुलके गौरवकी रक्षा करना सामान्य बात नहीं थी। हिन्दू-समाजको
उनसे बड़ी आशा हुई । और पीछे अन्यान्य क्षत्रियोंको भी वैसा करनेका
साहस हुआ । यहां तक कि प्रतापके अनुकरणसे अन्तमें बादशाहोंको
डोला देनेकी रीतिही उठ गई। प्रतापने इस कामके लिये बड़ा भारी कष्ट
उठाया । टाड साहबने प्रतापको वह सब कीर्ति गाई है। प्रतापको राजपाट
छोड़कर जंगल-जंगल घूमना पड़ा है। जैसी-जेसो विपद उनपर पड़ी हैं,
वह सब झेलना उन्हींका काम था। इसीसे हिन्दुओंने उनका नाम
'हिन्दूपति' रखा और उनके नामकी पूजा होने लगी।
___ कैसे दुःश्वकी बात है कि जिस महाराणाने दूसरे राजपूतोंको, मुसल-
मानोंको कन्या देनेसे रोका - एक बङ्गाली ग्रन्थकार उसीपर कलङ्क
लगाता है और उसको एक कल्पित लड़कीको एक मुसलमानके साथ
भगाता है। अब विचारिये कि जिस ग्रन्थकारने यह पुस्तक लिखी है,
उसने कैसा भारी अनर्थ किया है और कहां तक हिन्दुओंके मनको कष्ट
नहीं दिया ?
प्रतापका इतिहास
___'अश्रुमती' नाटकके कर्तासे हमारा प्रश्न है कि आपका यह नाटक
कल्पित है या ऐतिहासिक ? यदि कल्पित है, तो उसमें महाराणा प्रतापसिंह
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पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/५६४
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