नुस-निबन्धावली आलोचना-प्रत्यालोचना आदिके नाम लिखनेको क्या जरूरत पड़ी ? उनकी एक कल्पित लड़की खड़ी करके उसे एक मुसलमानके प्रेममें पागल करनेकी क्या जरूरत पड़ी ? अभी प्रतापसिंहका वंश पृथ्वीपर है। मेवाड़का राज्य अभी संसारसे उठ नहीं गया है । आज भी प्रतापकी गद्दीपर प्रतापके वंशधर महाराणा लोग मौजूद हैं । आज भी मेवाड़का राज्य अचल-अटल बना हुआ है। आज भी राजस्थानके सब नरेशोंमें महाराणाका मस्तक ऊँचा है। फिर किस हौसले पर 'अश्रुमती' के लिखनेवालेने महाराणा प्रतापको कलक लगाया है ? यदि इस बातकी लिखनेहीकी इच्छा थी कि नाहक ही एक राजपूत कन्या एक मुसलमानके प्रेममें पागल हो तो और नाम कल्पना कर सकता था। 'अश्रुमती' के लिये प्रताप छोड़कर कोई दूसरा बाप बना सकता था। किन्तु यदि यह कहा जाय कि यह नाटक ऐतिहासिक है, तो किस इतिहासमें लिखा है कि प्रतापके अश्रुमती नामकी एक लड़की थी ? और कहां लिखा है कि उसे मुसलमान उठा ले गये थे? यह सब बात केवल मिथ्या कल्पना-मात्रही नहीं है, वरञ्च इससे ग्रन्थकारक हृदयका गिरा भाव भी प्रकाशित होता है। वह जान-बूझकर एक निष्कलङ्क आदमीको कलङ्क लगानेकी चेष्टा करता है। महाराणा प्रतापकी कहानी कोई दस-पांच हजार वर्षकी नहीं है। वह सम्वत् १५६६, विक्रमीयमें जन्मे थे, संवत १६१८ विक्रमीयमें राजगद्दी पर बैठे थे और सम्बत् १६५३ विक्रमीयमें उनका देहान्त हुआ था। उनके देहान्तको सिर्फ ३०५ साल हुए हैं। इतनी निकटकी घटनाको इस हरह कलुषित करनेका अर्थ हम कुछ नहीं समझे। टाड साहबने जङ्गली बिल्ली द्वारा रोटी छीने जानेके समय प्रतापकं एक छोटी-सी कन्या दिखाई है, अश्रुमती जितनी जवान लड़को कोई नहीं दिखाई। फिर टाड साहवने हल्दीघाटकी लड़ाईमें केवल शाहजादे सलीमके आनेकी बात कही है, राणाकी किसी । ५४८ ]
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