पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/५६७

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गुप्त-निबन्धावली मालोचना-अत्यालोचना रुक्मिणी लता वर्णन अनूप वागीश बदन कल्याण सुव । नरदेव उभै भाषा निपुन पृथ्वीराज कविराज हुव ॥१४०॥" इसीसे देखना चाहिये कि हिन्दू-लोग पृथ्वीराजको किस दृष्टिसे देखते हैं। इसी प्रकार वीर-शिरोमणि शक्तिसिंहको भी एक प्रकारका हीन राजपूत साबित करनेकी चेष्टा की है और उसकी भतीजीका मुसल- मानसे प्रेम उसपर प्रगट किया है। महाराज मानसिंहने बादशाहको अपनी बहन जरूर दी थी, और प्रतापपर नाराज होकर उसने सेना भी चढाई थी। पर वह इतना नीच नहीं था कि प्रतापकी कन्याको मुसल- मानोंके हाथसे चोरी कराता। शायद 'अश्रुमती'कारने मानसिंहकी जीवनी नहीं पढ़ी। दुःख है कि 'अश्रुमती'कार मेवाड़ और राजपूतोंके विपयमें कुछ भी नहीं जानता, किन्तु नाटक लिखने बैठ गया। वह जानता नहीं कि अश्रुमती प्रतापकी लड़की तो क्या, किसी राजपूत-यहाँ तक कि किसी हिन्दुस्तानीकी, लड़कीका भी नाम नहीं होता। मेवाड़के वन-पर्वत-जंगल-झीलोंके विषयमें उक्त ग्रन्थकार कुछ भी नहीं जानता। इसीसे उसने बड़ी ऊटपटांग बात लिखी हैं ! पिछौला तालावको उसने पेशला नदी लिखा है ! उदाहरण-स्वरूप हम 'अश्रुमती'कर्त्ताकी कुछ खामखयाली दिखाते हैं --- “जब फरीद नामका मुसलमान मानसिंहके कहनेसे सोती अश्रुमतीको उठा लाया, तो मानसिंह उसके पास आकर कहने लगा--"हाँ, ठीक है, यही प्रतापसिंहकी कन्या है। यद्यपि मैंने इसको बहुत बचपनमें देखा था, तो भी यह पहचानी जाती है। अच्छा फरीद ! इस कन्यारत्नको लेकर तुम मुखसे घरबारी बनो, तुम्हारे परिश्रमका यहो पुरस्कार है ।" चाहे मानसिंह कितना ही अकबरका तरफदार हो, पर एक छोटे मुसल- मानके सामने उसके मुँहसे कभी ऐसे शब्द नहीं निकल सकते-चाहे स्वयं इन्द्र आकर उसके सिरपर वन क्यों न मारता हो । [ ५५० ]