पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/५६९

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गुप्त-निबन्धावली आलोचना-प्रत्यालोचना राजपूत-कन्याके मुखसे ऐसी बात कभी नहीं निकल सकती। यदि निकले, तो चाचा शक्तिसिंह एक अश्रुमतीको नहीं, हजार अश्रुमतीको उसीदम तलवारके घाट उतार सकता है। शक्तिसिंहही नहीं, राजपूतके घरका एक चमार भी ऐसी कन्याका सिर काट डालनेका अधिकार रखता है। पर बङ्गाली लोग इन बातोंको नहीं जानते और न जान सकते हैं ! इसीसे अधिक बात उद्धृत नहीं की गईं। पोथीका अधिक भाग ऐसी ही कलंक-भरी बातोंसे भरा हुआ है। हमारी प्रार्थना 'अश्रुमती' के कर्तासे हमारी प्रार्थना है कि आपने चाहे किसी भाव और किसी नियतसे यह पोथी क्यों न लिखी हो, पर उससे हिन्दुओंकी बड़ी भारी निन्दा हुई है। इसमें लिखी हुई बातोंसे हिन्दुओंके हृदयमें बड़ा भारी आघात लगता है, राजपूतोंकी इससे बड़ी अपकीर्ति होती है ! मेवाड़-राजवंशका इससे बड़ा अपमान होता है। इससे जो छपी सो छपी, अब अपनी इस पोथीका छापना बन्द कीजिये और जो पोथी छपी हुई बाकी हैं, उन्हें फंक-जलाकर उनकी राख गङ्गाजीमें फंक दीजिये। इससे हिन्दुओंका चित्त शान्त होगा और हिन्दू आपकी उदारताकी बड़ाई करेंगे। हम आशा करते हैं कि राजपूत-महासभा और हिन्दू समाज दोनोंमें किसी प्रकारका आन्दोलन उठनेसे पहलेही आप इस कामको करके सब हिन्दुओंके चित्तको शान्त करेंगे। -भारतमित्र सन १६०१ ई० [ ५५२ ]