पृष्ठ:गुप्त-निबन्धावली.djvu/५८५

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गुप्त-निबन्धावली आलोचना-प्रत्यालोचना नहीं, जब जो चाहते हैं मिलता हैं, जब जो कहते हैं होता है, सदा सुख चैनसे कटती है, इन लोगोंके ऐसा बड़भागी इस जगतमें और दूसरा कोई नहीं है। उत्तर ओर यह जो अकेला चमकता हुआ तारा दिखलाई पड़ता है, जिसके आसपास और कोई दूसरा तारा नहीं है यह ध्रुव है। यह एक राजाके लड़के थे, इन्होंने बड़ा भारी तप किया था, उसी तपके बलसे आज उनको यह पद मिला हुआ है। इन सरके ऊपरके सात तारोंको देखो, यह सातों रिखी हैं। इनमें ऊपरके चार देखनेमें चौखूटे जान पड़ते हैं, पर नीचेके तीन कुछ-कुछ तिकोनेसे हैं। इन्हीं तीनोंमें जो बीचका तारा है, वह वसिष्ट मुनी हैं। उनके पासही जो बहुत छोटासा तारा दिखलाई पड़ता है, वह अरुन्धती हैं, यह बसिष्ट मुनीकी इसतिरी हैं। यह बड़ी सीधी, सच्ची, दयावाली, और अच्छी कमाई करनेवाली हो गई हैं, अपने पतीके चरनोंमें इनका बड़ा नेह था। इनकी भांति जो इसतिरी अपने पतीके चरनोंकी सेवकाई करती हैं, पतीकोही देवता जानती हैं, उन्हींकी पूजा करती हैं, उन्हीं में लव लगाती है, सपने में भी उनके साथ बुरा बरताव नहीं करती, भूलकर भी उनको कड़ी बात नहीं कहतीं, कभी उनके साथ छल-कपट नहीं करतीं, वह सब भी मरनपर इसी भांत अपने पतीके साथ रहकर सरग सुख लूटती हैं।" आकास, पच्छिम, अन्धियाला, मिट्टी, यह सब शब्द ब्रजभाषाके भी नहीं हैं। ब्रजभाषामें अकास, अंधियारा, मट्टी या माटी, कहा जाता है और 'इसतिरो' शब्द भी ब्रजभाषामें नहीं। अच्छी भाषा बोलनेवाले किसी प्रान्तमें इन शब्दोंको नहीं बोलते। किसी प्रान्तके बेपढ़े लोग बोलते हों, तो ऐसे शब्द साधारण भाषामें आने नहीं चाहिये। सिरको अयोध्यासिंहजीने 'सर' लिखा है। हिन्दीमें 'सर' नहीं होता। उर्दूवाले [ ५६८ ]